Book Title: Karnanuyog Praveshika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 50
________________ करणानुयोग-प्रवेशिका १५९. प्र०-आहारपर्याप्ति किसे कहते हैं ? उ०-आहारवर्गणाके परमाणुओंको खल और रसभाग रूप परिणमानेकी कारणभूत जोवकी शक्तिको पूर्णताको आहारपर्याप्ति कहते हैं । १६०. प्र०-शरीरपर्याप्ति किसे कहते हैं ? उ.-जिन परमाणुओंको खल रूप परिणमाया था उनको हाड़ वगैरह कठिन अवयवरूप और जिनको रसरूप परिणमाया था उनको रुधिर आदि रूप परिणमानेको कारणभूत जीवको शक्तिको पूर्णताको शरीरपर्याप्ति कहते हैं। १६१. प्र०-इन्द्रियपर्याप्ति किसे कहते हैं ? उ०- आहारवर्गणाके परमाणुओंको इन्द्रियके आकाररूप परिणमानेमें तथा इन्द्रिय द्वारा विषय ग्रहण करने में कारणभूत जीवको शक्तिकी पूर्णताको इन्द्रियपर्याप्ति कहते हैं। १६२. प्र.-श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति किसे कहते हैं ? उ०-आहारवर्गणाके परमाणुओंको वासोच्छ्वास रूप परिणमानेमें कारण भूत जीवको शक्तिकी पूर्णताको श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति कहते हैं। १६३. प्र०-भाषापर्याप्ति किसे कहते हैं ? उ०-भाषावर्गणाके परमाणुओंको वचनरूप परिणमानेमें कारणभूत जीवको शक्तिकी पूर्णताको भाषापर्याप्ति कहते हैं। १६४. प्र०-मनःपर्याप्ति किसे कहते हैं ? उ.-मनोवर्गणा के परमाणुओंको द्रव्य मनरूप परिणमानेमें तथा उसके द्वारा गुण-दोषका विचार, बोतो बातका स्मरण आदि कार्य करनेमें कारणभूत जोवको शक्तिको पूर्णताको मनःपर्याप्ति कहते हैं। १६५. प्र०--पर्याप्तियोंके आरम्भ और पूर्णताका क्या क्रम है ? उ०-अपने अपने योग्य पर्याप्तियोंका आरम्भ तो एक साथ ही होता है किन्तु उनकी पूर्णता क्रमसे होती है। सब पर्याप्तियोंके पूर्ण होनेका काल अन्तर्मुहूर्त है और एक-एक पर्याप्तिके पूर्ण होनेका काल भी अन्तर्मुहूर्त है। किन्तु पहलेसे दूसरेका, दूसरेसे तीसरेका इस तरह छठे तकका कालक्रमसे बड़ा-बड़ा अन्तर्मुहूर्त है। १६६. प्र०-किस जीवके कितनी पर्याप्तियाँ होती हैं ? उ०-एकेन्द्रियके भाषा और मनके बिना शेष चार पर्याप्तियाँ होती हैं। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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