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करणानुयोग- प्रवेशिका
८७. प्र० - व्यन्तर देवोंके कितने भेद हैं ?
उ०- आठ भेद हैं- किन्नर, किंपुरुष, महोरग, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस, भूत और पिशाच ।
८८. प्र० - व्यन्तर देव कहाँ रहते हैं ?
उ०- विविध देशान्तरोंमें रहनेवाले देवोंको व्यन्तर कहते हैं । सो यों तो चित्रा और वज्रा पृथिवीके मध्यसे लेकर मेरु पर्वतकी ऊँचाई पर्यन्त मध्यलोक में व्यन्तरों का निवास है किन्तु रत्नप्रभा पृथिवी के पंकबहुल भाग में राक्षस और खर पृथिवी भाग में शेष सात प्रकार के व्यन्तर रहते हैं ।
८९. प्र० - व्यन्तर देवों की आयु कितनी है ?
उ०- व्यन्तर देवोंकी उत्कृष्ट आयु एक पल्यसे अधिक है और जघन्य आयु दस हजार वर्ष है |
९०. प्र० - ज्योतिष्क देवोंके कितने भेद हैं ? उ० – ज्योतिष्क देवोंके पाँच भेद हैं- सूर्य, तारा । चूंकि ये ज्योति ( चमक ) वाले होते हैं, कहते हैं ।
९१. प्र० - ज्योतिष्क देव कहाँ रहते हैं।
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उ०- चित्रा पृथिवी से सात सौ नब्बे योजन ऊपर तारे हैं । तारोंसे दस योजन ऊपर सूर्य है । सूर्यसे अस्सी योजन ऊपर चन्द्रमा है । चन्द्रमासे चार योजन ऊपर नक्षत्र हैं । नक्षत्रोंसे चार योजन ऊपर बुध है । बुधसे तीन योजन ऊपर शुक्र है । शुक्रसे तीन योजन ऊपर बृहस्पति है । बृहस्पतिसे तीन योजन ऊपर मंगल है | मंगलसे तीन योजन ऊपर शनैश्चर है । इस तरह चित्रासे सात सौ नब्बे योजन ऊपरसे लेकर नौसौ योजन पर्यन्त एक सौ दस योजनकी मोटाइमें ज्योतिष्क देव रहते हैं ।
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चन्द्रमा, ग्रह, नक्षत्र और इसलिये इन्हें ज्योतिष्क
९२. प्र० - ज्योतिष्क देवोंके विमानोंका आकार आदि कैसा है ? - गोल नींबूको बीच में से काटकर आधे भागको चौड़ा भाग ऊपरकी ओर करके रखनेसे जैसा आकार होता है वैसा ही आकार सब ज्योतिष्क विमानोंका है । सो चन्द्रमाके विमानका व्यास एक योजनके इकसठ भागों में से छप्पन भाग है और सूर्यके विमानका व्यास अड़तालीस भाग है । राहु और केतुके विमानका व्यास कुछ कम एक योजन है । ये दोनों विमान क्रमसे चन्द्रमा और सूर्यके विमानके नीचे चलते हैं और छै मास बीतने पर पर्वके दिन चन्द्रमा और सूर्य को ढक लेते हैं। इसीका नाम ग्रहण है ।
९३. प्र० - एक चन्द्रमाका परिवार कितना है ?
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