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करणानुयोग-प्रवेशिका उ.-भरत और ऐरावत क्षेत्रमें जिस-जिस कालमें जो मनुष्य हुआ करते हैं उस-उस कालमें उन्हीं मनुष्योंके अंगुलका नाम आत्मांगुल है।
३५. प्र०-आत्मांगुलसे क्या मापा जाता है ?
उ०-झारो, कलश, दर्पण, भेरी, शय्या, गाड़ी, हल, मूसल, अस्त्र, सिंहासन, चमर, छत्र, मनुष्योंके निवास स्थान, नगर, उद्यान आदिका माप अपने-अपने समयके आत्मांगुलसे होता है।
३६. प्र०-योजन किसे कहते हैं ?
उ०-छै अंगुलका एक पाद, दो पादको एक वितस्ति ( बालिश्त ), दो वितस्तिका एक हाथ, चार हाथका एक धनुष और दो हजार धनुषका एक योजन होता है।
३७. प्र०-सागर किसे कहते हैं ?
उ०-दस कोड़ाकोड़ी व्यवहार पल्योंका एक व्यवहार सागरोपम, दस कोड़ाकोड़ो उद्धारपल्योंका एक उद्धार सागरोपम और दस कोडाकोड़ी अद्धापल्योंका एक अद्धा सागरोपम होता है।
३८. प्र०-कोड़ाकोड़ी किसे कहते हैं ?
उ०-एक करोडको एक करोड़से गुणा करनेपर जो लब्ध आये उसे कोडाकोड़ी कहते हैं।
३९. प्र०-सूच्यंगुल किसे कहते हैं ?
उ०-अद्धापल्यके जितने अर्द्धच्छेद हों उतनी जगह अद्धापल्यको रखकर परस्परमें गुणा करनेपर जो राशि उत्पन्न हो उतने आकाश प्रदेशोंकी मुक्तावलो करनेपर एक सूच्यंगुल होता है। सो एक अंगुल लम्बे प्रदेशोंका प्रमाण जानना।
४०. प्र०-अर्द्धछेद किसे कहते हैं ?
उ०-किसो राशिके आधा-आधा होनेके वारोंको अर्द्धच्छेद कहते हैं। अर्थात् जो राशि जितनी बार समरूपसे आधी-आधी हो सकती है उसके उतने ही अर्द्धच्छेद होते हैं। जैसे-सोलहके अर्द्धच्छेद चार होते हैं क्योंकि सोलह राशि चार बार आधी-आधी हो सकती है-८, ४, २, १।
४१. प्र०-प्रतरांगुल किसे कहते हैं ? उ०-सूच्यंगुलके वर्गको प्रतरांगूल कहते हैं। ४२. प्र०-घनांगुल किसे कहते हैं ?
उ०-सूच्यंगुलके घनको घनांगुल कहते हैं। सो एक अंगुल लम्बा, एक अंगुल चौड़ा और एक अंगुल ऊँचा, प्रदेशोंका परिमाण जानना ।
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