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करणानुयोग-प्रवेशिका
जन्म नहीं लेता और न असंज्ञो लब्ध्यपर्याप्तक होता है । किन्तु सातवें नरकसे निकला हुआ जीव संज्ञी पर्याप्त गर्भज तिर्यञ्च ही होता है मनुष्य नहीं होता ।
५७. प्र० – नरक से निकलकर जीव क्या-क्या नहीं होता ?
उ०- नरक से निकला हुआ जीव मनुष्य पर्यायमें जन्म लेनेपर भी नारायण, बलभद्र और चक्रवर्ती नहीं हो सकता तथा चौथे आदि नरकों से निकला हुआ तीर्थङ्कर भी नहीं होता । पाँचवीं आदि नरकोंसे निकला हुआ जीव मोक्ष नहीं जा सकता । छठीं आदि नरकों से निकला हुआ मुनि पद धारण नहीं कर सकता और सातवें नरकसे निकला हुआ पहले गुणस्थानमें ही रहता है, ऊपरके गुणस्थानोंमें नहीं चढ़ता ।
५८. प्र० - कौन जोव किस नरक तक जन्म ले सकता है ?
उ०- असंज्ञो पञ्चेन्द्रिय प्रथम नरक तक, सरीसृप दूसरे नरक तक, पक्षी तीसरे नरक तक, सर्प चौथे तक, सिंह पाँचवें तक, स्त्री छठें तक और मनुष्य तथा मत्स्य सातवें नरक तक जन्म ले सकते हैं ।
५९. प्र० - मध्यलोकका विशेष स्वरूप क्या है ?
उ०- मध्यलोकके बीचोबीच एक लाख योजन चौड़ा और थाली की तरह गोल जम्बूद्वीप है । जम्बूद्वीपके बीच में एक लाख योजन ऊँचा सुमेरु पर्वत है | एक हजार योजन जमीनके भीतर इसका मूल है । निन्यानबे हजार योजन पृथिवोके ऊपर है और चालोस योजनकी इसकी चूलिका ( चोटी ) है । तीनों लोकका मापक होने से इसे मेरु कहते हैं। मेरुके नोचे अधोलोक है, मेरुके ऊपर लोकके अन्त पर्यन्त ऊर्ध्वलोक है और मेरुकी ऊँचाईके बराबर मध्यलोक है । जम्बूद्वीप के बीच में पश्चिम पूरब लम्बे छे कुलाचल (पर्वत) पड़े हुए हैं उनसे जम्बूद्वीप के सात खण्ड हो गये हैं । प्रत्येक खण्ड में एक-एक क्षेत्र है । उनके नाम इस प्रकार हैं- भरत, हैमवत, हरि, विदेह, रम्यक, हैरण्यवत और ऐरावत । भरत क्षेत्रका विस्तार उत्तर-दक्षिण पाँच सौ छब्बीस योजन और एक योजनके उन्नीस भागों मेंसे छै भाग है । भरत क्षेत्र के बीच में पश्चिम पूरब लम्बा विजयार्ध पर्वत पड़ा हुआ है। उससे भरत के दो भाग हो गये हैं - एक उत्तर भरत और एक दक्षिण भरत । हिमवान पर्वतसे निकलकर गंगा और सिन्धु नामकी नदियाँ उत्तर भरत क्षेत्रमेंसे बहती हुई विजायार्धं पर्वतकी गुफाओंसे निकलकर दक्षिण भारतमें बहती हैं और लवण समुद्रमें मिल जाती हैं । उनके कारण भरत क्षेत्रके छै खण्ड हो गये हैं । भरत क्षेत्रसे
५७. त्रि० सा०, गा० २०४ ।
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