Book Title: Jayantiprakaranvrutti
Author(s): Malayprabhsuri, Chandanbalashreeji
Publisher: Shrutgyan Prasarak Sabha

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Page 293
________________ २५६ 10 जयन्तीप्रकरणवृत्तिः । गाथा ४।५।६ विणयगुणरयणधरणी सीलकलासरससल्लईकरिणी । लच्छी वल्लहपत्ती सुसाविया तस्स असवत्ती ॥३॥ ताण कुलगयणचन्दा सयलकलाजणियजणमणाणन्दा । अरिहन्न-अरिहमित्ता दो पुत्ता जोव्वणं पत्ता ॥४॥ सिरिकन्ता सिरिदत्ता भज्जाओ ताण कुलपयाओ । विसयसुहं ताहिं समं भुञ्जन्ताणं वहइ कालो ॥५॥ अन्नदिणे सिरिकन्ता संथवओ अरिहमित्तरूवेण । सुहमणलोयणकमलोम्मीलणमह लहइ भिसिणि व्व ॥६॥ रूवसिरीए मयणो एसो पडिपुन्नचन्दसमवयणो । नीलुप्पलदलनयणो अइसयसोहग्गजलसयणो ॥७॥ ललियसयलंगचंगिममुत्तीए जायरूवदित्तीए । एसो सुरंगणाओ अवि मोहइ किं पुण न अम्हे ? ॥८॥ किंकिल्लिपल्लवारुणकरकिरणुक्केरकुंकुमच्छडाहिं । परिरम्भसु हे रंजउ महहिययं एस तो सुहओ ॥९॥ कणयसिलायलवच्छो एसो निम्मलकलाहिं पडिहत्थो । परिहासकरणदच्छो माणससरसलिलभरसच्छो ॥१०॥ तो अरिहमित्तदेहे इय गुणसंसासमुल्लसियनेहे । जलियमयणग्गितत्ता रत्ता चइऊण मज्जायं ॥११॥ ओहासइ सिरिकन्ता एगन्ते सोम ! संगमरुइए। मह निव्वावय गत्तं कामं कामग्गिसंतत्तं ॥१२॥ ता भोगसुहं दिज्जउ वच्छल ! महपाणधारणं जेण । निवडन्ती धारिज्जइ अहिणा भोगेण धरणी वि ॥१३॥ इय भाउज्जायाए लज्जामज्जायवज्जियं वयणं । विज्जु व्व तम्मि सीलखीरसमुद्दम्मि विज्झायं ॥१४॥ परिभावइ दिढसत्तो तत्तो सो सावओ अरिहमित्तो । मह जिट्ठभाउजाया मायातुल्ला वि कह भुल्ला ? ॥१५॥ १. बिसीनी = कमलिनी। 15 20 25 Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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