Book Title: Jayantiprakaranvrutti
Author(s): Malayprabhsuri, Chandanbalashreeji
Publisher: Shrutgyan Prasarak Sabha

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Page 376
________________ ३३९ जयन्तीप्रकरणवृत्तिः । गाथा १९।२०।२१ तत्थ य अत्थविहिणो दुत्थविहत्थो असंत्थुए लोए । भोयणमित्तत्थेणं ओलग्गइ पोलिपाहरियं ॥१९॥ तम्मि समयम्मि भयवं भत्तिब्भरदेवकोडिपरियरिओ। उज्जाणे गुणसिलए वीरजिणिन्दो समोसरिओ ॥२०॥ नायरजणो नरिन्दो सव्विड्डीए जिणिन्दवन्दारू । नीहरिओ पोलीए ठवित्तुं तं तीए पाहरिओ ।।२१।। भक्खियदुवारदेवयबली इमो सेडुओ दिओ तिसिओ । मरिउं जलचिन्ताए वावीए ददुरो जाओ ।।२२।। पुण वीरजिणोसरणे महिलासंलावजाइसरणेण । संविग्गो मण्डुक्को जिणरायं वन्दिउं चलिओ ॥२३।। जिणवन्दणत्थपत्थियसेणियसेणातुरंगखुरप्पहओ। अचलियजिणवरभत्तीए दद्दुरो सुरवरो जाओ ॥२४॥ ओहिन्नाणवियाणियपुव्वभवो एस चिन्तए एवं । एसा जिणिन्दभत्ती अपुव्वमाहप्पकप्पलया ।।२५।। वीरजिणन्दस्सुवरि सेणियरायस्स केरिसी भत्ती । एवं विणिच्छयत्थं ओसरणे एइ सो देवो ॥२६॥ दिट्ठो निवेण कुट्ठी पूयरसेणेव चन्दणरसेण । पुणरुत्तं पयवीढं सिञ्चन्तो देवमायाए ॥२७॥ चिन्तइ निवो वि एसो जुगुच्छणिज्जो जिणिन्दपयवीढे । आसायणदोसिल्लो बहिं गओ निग्गहेयव्वो ॥२८॥ ता छिक्काए सवणे वीरजिणाईण संमुहं भणइ । सो जिणवर ! मरसु तुमं जीवसु सुइरं तुमं राय ! ॥२९॥ अभयकुमाराभिमुहं मरसु तुमं मंति जीव वा बहुयं । सोयरियं कालं पइ मा जीवसु मा तुमं मरसु ॥३०॥ एवं तव्वयणेन्धणसन्धुक्कियकोवधूमकेउस्स । सेणियस्स दिट्ठी कसिणा पसरईमं धूमकुरुलि व्व ॥३१॥ 15 20 25 Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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