Book Title: Jayantiprakaranvrutti
Author(s): Malayprabhsuri, Chandanbalashreeji
Publisher: Shrutgyan Prasarak Sabha
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जयन्तीप्रकरणवृत्तिः । गाथा २५।२६ एवं महुरावणिओ मुणिऊण कहाणयं गओ महुरं । चिन्तइ विविहोवाए नियकज्जए साहणट्ठाए ॥११॥ अन्नोवायालाहे सो पावो चक्खुलोलुओ। मुद्धो कोडिं दीणाराणं दाऊणं सिद्धविज्जाणं ॥११२॥ पाणाणं भणइ इमं घडह मए कहवि धारणिं देवि । विज्जाबलेणं तेहिं वि नयरीए विउव्विया मारी ॥११३।। आदन्नेणं रन्ना भणिया पाणा इमं तलारत्तं । सव्वोवद्दवरक्खाकए विईन्नं मए तुम्ह ।।११४।। तेहि वि भणियं सामीय ! सम्मं नाऊण विन्नविस्सामो । तो विज्जासत्तीए कहिया अन्तेउरे मारी ॥११५।। जोयन्तेणं रन्ना अवरोहे धारिणीए सुत्ताए। पासे बालाईणं दिट्ठाइं अंगुवंगाई ॥११६।। तो रुटेणं रन्ना केसग्गाहेण कड्डिउं ताण । पाणाण निग्गहत्थं समप्पिया सन्तिकरणत्थं ॥११७|| तेहिं वि भणियं सामिय ! संतिकरी होइ निग्गहिज्जन्ती । पच्छन्नं चिय रन्ना वुत्तं एवं करेहि त्ति ॥११८॥ तो रयणीए तीए कीरन्ते निग्गहे महुरवणिओ । कयसंकेओ सिग्धं समागओ तप्पएसम्मि ॥११९।। एयाए मुत्तीए एयं कम्मं न होइ एयाए । एवं तव्वयणेणं सुहारसेणेव सा सित्ता ॥१२०।। पुणरवि विणएणुत्तं पाणाणं सम्मुहं जहा एयं । मुञ्चह तुब्भे अहवा नो मुञ्चह मं विणासेह ॥१२१॥ जइवा दीणाराणं कोडिं घित्तूण एह समप्पेह । रायभएणं जम्हा दूरे देसन्तरे जामि ॥१२२।। तो तस्स अप्पिया सा तेण समं जाइ धारिणी देवी । चिन्तइ य एस को वि हु ? मह जीवियदायगो जाओ ॥१२३।।
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