Book Title: Jayantiprakaranvrutti
Author(s): Malayprabhsuri, Chandanbalashreeji
Publisher: Shrutgyan Prasarak Sabha
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३८८
जयन्तीप्रकरणवृत्तिः । गाथा २५।२६ अइसंभमेण पुट्ठा रन्ना एगागिणी कहं पत्ता? ।। कहियं सव्वं तीए चिट्ठइ भत्ता वि देवउले ॥३४॥ पडिहारो आणत्तो रन्ना जह कुणसु सव्वसामग्गि । भइणीवइणो जामो पच्चोलिं जेण अइतुरियं ॥३५।। चउरंगबलसमग्गो राया जा एइ तत्थ देवउले । दिट्ठो अवन्तिनाहो न तत्थ भइणीवई तेण ॥३६।। इय राया जाणावइ पुरिसं पट्ठविय बन्धुमइभइणि । सा य ससोगा पत्ता पासइ दइयं रओवसमे ॥३७।। रहचक्कचम्पणेणं छिन्नियसिरकमलमह महामोहं । पत्ता विमुक्कवाहं धस त्ति धरणियले पडिया ॥३८॥ नरसुन्दरो वि राया सम्पत्तो तत्थ सीयलजलेण । पवणेण य आसासइ बन्धुमई तयणु आसत्था ॥३९।। विलवइ करुणसरेणं हा विहि ! कह ? देसि वसणदन्दोलिं । रज्जहरणेण अम्हं न हु तुट्ठोऽरन्नवासेण ॥४०॥ हा पाणनाह ! मह नेहपासबद्धेण रज्जलच्छी वि । हारविया संपइ मं छड्डिविय कत्थ पत्तो सि? ॥४१।। जं इत्थ तुमं मोत्तुं नयरीमज्झम्मि बन्धवसमीवे । एगागिणी गयाऽहं खमाहि तं देसु पडिवयणं ॥४२॥ हा हयविहि ! तुज्झ मए अवरद्धं किमिह ? जेण अपसन्नो । विहिओ अवन्तिनाहो पडिवयणपरम्मुहीभूओ ॥४३॥ तुह विरहदावतविया पिययम ! गच्छामि कत्थ कं सरणं ? ।
जामि अहं सामि कहं ? तए विणा निव्वुया होमि ? ॥४४॥ अवि य
"भत्ता सुक्खाणखणी भत्ता चिन्तामणी महिलियाणं । भत्ता जीवियनाहो तव्विरहे ताण बहुदाहो ॥४५॥ भत्तारदेवयाओ नारीओ हुन्ति जीवलोगम्मि । सव्वत्थ संकणिज्जा तव्विरहे हुन्ति जं ताओ" ॥४६॥
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