Book Title: Jayantiprakaranvrutti
Author(s): Malayprabhsuri, Chandanbalashreeji
Publisher: Shrutgyan Prasarak Sabha
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परिशिष्टम्-२ जयन्तीप्रकरणवृत्तौ उद्धरण-तात्त्विकपद्यानाञ्चाकाराद्यनुक्रमणिका ४०५ गंगा वि भवे पडिया [ ] २४९-१०४ | जेण विइन्ना दिट्ठी ।
५९३-५१ गुणरयणायरगुरुयणपूयं १-१५५ जेणं चिय संसारो [] २५०-१०४ गुरवो यत्र पूज्यन्ते [ ] १७-१५७ जेणं चिय संसारो
५०-३८९ गुरुवयणमन्तज्झाणं [] २९६-१४८ जेसिं पगइसरूवं
३४-२०३
जो जत्तियस्स अत्थस्स ८७-३२५ चारित्तजाणवत्तं ८२- जो होइ विणयसीलो
७-१५६ चुज्जमणुकंपमाणो
९-११३ चेयन्नं जीवाणं
१-३२८|| | झाणं पि कुणन्ताणं
१४४-२२४ चेलुक्खेवं गयणे
१९८-२४५ तक्कित्तिकरणओ पुण
८-११३ छज्जीवनिकायाणं
६७५-५८ तप्पच्चयपावेणं भमइ ८२-२६२ छत्तधरीचेडीओ
७९९-६७ | तमपसरो अवणिज्जड़ ५-१६४ छेयणभेयणताडण २-१९४ | तमिह गुरुत्तं जीवा
७-१८५ तम्हा एसो रागो
८४-२६२ जइ भंगुरकाएणं ६८-१०/ तम्हा जीवाविराहणं
१८-१८६ जइवि गुणरयणखाणी ६०-९० तल्ले कोट्ठसमुग्गा पत्ते
७९६-६७ जयणा धम्मजणणी [] ३१-१८७ तवतवेण दुवालसतणुणा ६-१६४ जयणा धम्मजणणी [] ४८-२३४ | तस्मात् रसगृद्धिरसौ
५-३८२ जह बालो जंपंतो [] ८८-१५५/ तह संसएण जिणवर
३-१८५ जह भरहमहाराया . ७-१६९/ तं अभयं जे पत्ता
२१७-१४२ जह वीरभद्दनामा ५-८५/ तं चारित्तवसेणं
८-३२७ जहा लाहो तहा लोहो [] ४४-२५२] तं पुण जिणेहि भणियं
८-१४९ जं अकयतवच्चरणा
६-१६९| ता तुंगो मेरुगिरि मयरहरो [ ] ८६१-७२ जं चेव गाहगाणं इ8 ६७८-५८ तारयमज्झगओ
२-१८५ जाण परजुवइमणहर- [] २४-११४ | तिक्खग्गकढिणफलया ३३७-३१ जाण परजुवइमणहर- [] ३६४-३३ | ति च्चिय पुरिसा धन्ना ६०-३९० जिणधम्मखीरसायरमुत्तिसु ४-१६९ | तिणसंथारमुवन्नो वि [ ] ८५७-७२ जिणसासणखिसाए १९३-२४५ | तित्थयरेण वि कहिए
३-३२८ जीवदय च्चिय मूलं ३-२०४| तिरिया वि दिति
६८१-५८ जीवाण विणासेणं
१४-१८६ तिव्वयरे उ पओसे [ ] २-२७९ जुगसमिलानाएणं
७-३२७/ तुमए जिणधम्मो रम्मो २९०-१०७ जे पुण विसयासत्ता ४-१९६ तुह अकयगवयणेणं
९९८-८३
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