Book Title: Jayantiprakaranvrutti
Author(s): Malayprabhsuri, Chandanbalashreeji
Publisher: Shrutgyan Prasarak Sabha
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४०८
वसणे वि पाणदाणं वसहिकहनिसिज्झइंदिय [ ] वहमारणअब्भक्खदाण [] वहमारणअब्भक्खाण[] वाया सहस्समइया [ ] वाहिजराखरदाढो वासीचंदणकप्पो विणओ ही मूलबन्धो विणयंगओ सुपुरिसो विणयन्नुयम्मि सीसे [] विणया नाणं [] विनयेन भवति गुणवान् [ ] विन्नायबंधमोक्खो वियसियपउमे न विससइ विसयविसमुच्छिएसुं
जयन्तीप्रकरणवृत्तिः १७-१८६ | संजोगमूला जीवेण [ ] ५९-१६८ ९९-३७७ | संजोगविओयानल
५३८-४७ १-२७९ संसारम्मि अरन्ने
१२-११९ १२-१८६ | संसारम्मि सुसाणे
६-३९० ५९६-५१ सावयकुलमणुयत्ते
१-२०१ ५२-३८९ | सासियलउसियदमिणी
७९८-६७ ७-१६४ साहसं अवलंबंतो [ ]
९४-९२ ३-१५६ सिज्जादाणपभावेणं [] ४७३-४२ ८-१५६ सिज्झाट्ठियाण सुट्ठिय
४७४-४२ ४-१५६ | सिरिहिरिधिईकित्तिओ
७९२-६७ ५-१५६ सिवनयरम्मि पविट्ठो
१८-१५० ५०-१५९ सिवपुरपहम्मि अक्खलिय २-१५५ ५४२-४७| सीलं पुण पडिपन्नं
१-१२६ १-३१६ | सीलं भन्नइ वित्तं
२००-२० ५९-३८९ सुमणोवियासवाडी
५-११३ सुलहा सुरलोयसिरी
३०-२३२ ५३९-४७| सुवर्णपुष्पितां पृथ्वी [ ] ४९-१५९ २३-३८७ सुहल च्चिय जियलोए ४३-२५९ २९२-१०८ सेणियनिवो वियारइ
४४-३४० ३७-३३५ सो चाओ सलहिज्जइ १५-१८६ १-१८५/ सो दाणसीलतवभावणाहि ५४०-४७ १-१९४ | सो सल्लमुद्धरतो
१७-१५० २२-२५७ | सोगइमग्गपईवं []
५४८-४८ १-२४९/ सोसंतो जडभावं
५-१४९ ५९-१३० ४-१९०/ हत्थी जाणा जुग्गा
७९३-६७ | हंसे कुंचे गरुडे
७९५-६७ १६-१८६ हिययस्थलम्मि रूढो २९१-१०८ ४-१४९ | हुयासणेण तत्तस्स [ ]
३-१४९ १६७-२४३ | होइ निसिद्धप्या [ ] २९९-१०८
सइ सिवपुरम्मि ठाणे समाहतं यस्य करैः [] सम्मत्तदायगाणं [] सम्मदंसणरयणे सम्मइंसणरयणं सयलसुहपावयाणं सरिसवमित्तं सुक्खं सर्वविनाशाश्रयिणः [] सव्व च्चिय धन्ना सव्वं तं पुण भन्नइ सव्वत्थसिद्धिहेऊ सव्वेसिं जीवाणं सव्वेसिं पयडीणं [] सव्वो पुव्वकयाणं [ ]
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