Book Title: Jayantiprakaranvrutti
Author(s): Malayprabhsuri, Chandanbalashreeji
Publisher: Shrutgyan Prasarak Sabha
________________
३८१
जयन्तीप्रकरणवृत्तिः । गाथा २५।२६
अस्सि पउमकुमारे जीवन्ते कह हवेज्ज रज्जसिरी ? । मह तणयस्स भमरी कमलं मुत्तुं किं ? विसइ निम्बे ॥१०॥ केणावि उवाएणं एयं मारेमि जेण महपुत्तो । उवभुंजइ रज्जसिर सग्गे सक्को व्व सच्छन्दो ॥११॥ तहकायव्वमकज्जं बुद्धिमया जह न होइ इहलोए । दुसहो अयसो वाओ पुज्जइ नियओऽभिप्पाओ ॥१२॥ इच्चाइ कमलमाला देवी चिन्तेइ रुद्दझाणट्टा ।
अह गिम्हे वट्टन्ते पउमकुमारो य ललियंगो ॥१३॥ विलसइ नईए मज्झे नावाकडएण तरुण-तरुणीहिं । सद्धि कप्पुरागुरुचन्दणरसभरियसिंगीहिं ॥१४॥ कणयमयाहिं निच्चं नाणाविहगीयनाडयविहीहिं । सुरसरियाए पवाहे जह इन्दो देवदेवीहिं ॥१५॥ तत्तो सवक्कजणणी पउमकुमारस्स मारणोवाए । विसमिस्ससुरहिवासे कारइ गंधप्पिओ जेण ॥१६॥ मज्झट्ठियवासपुडं मंजूसं सा खिवावइ नईए । उवरिं नियपुरिसेहिं दिट्ठा कुमारेण सा इन्ती ॥१७॥ आगयामत्ता गहिया होही अत्थो त्ति इत्थ तुटेणं । उग्घाडियाए तीए दिट्ठो कुमरेण वासपुडो ॥१८॥ अग्घाइओ सहरिसं जिनियमित्तम्मि तम्मि पुडयम्मि । पंचत्तं सो पत्तो कुमरो गन्धप्पिओ पउमो ॥१९॥ इहपरलोयसुहाणं न भायणं जमिह एस संजाओ । गन्धप्पिओ कुमारो तम्हा घाणिन्दियं जिणह ॥२०॥
घ्राणेन्द्रियविषयकथानकं समाप्तम् ॥
15
Jain Education International 2010_02
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462