Book Title: Jayantiprakaranvrutti
Author(s): Malayprabhsuri, Chandanbalashreeji
Publisher: Shrutgyan Prasarak Sabha

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Page 394
________________ ३५७ 10 जयन्तीप्रकरणवृत्तिः । गाथा २३ एयाए माहणीए उयराओ गब्भनिग्गमो एस । सूयइ मह निब्भतं नरयपुरद्दारमुग्धडियं ॥२५॥ सच्चं चिय जम्पन्ती महदुच्चरियं महाणुभावेसा । अन्नाणन्धेण मया धिद्धी कह बम्भणी निहया ? ॥२६॥ मह पसरियपायाणं दुकम्मपावाण मेरुभूयाण । उवरिं चूला वट्टइ एसा णणु माहणीहच्चा ॥२७॥ एवं दुकम्मनिन्दापसरेणं परसुघायविसरेणं । छिन्नप्पायं तेण मूलाओ पाववणगहणं ॥२८।। पुणरवि दढप्पहारी चिन्तइ किं मज्झ जीविएण ? । आबालकालउ च्चिय दुरन्तघणपावमलिणेण ॥२९॥ करवत्तघायभयरवजलजलणनिवायमूलभेयाणं । तो पावसुद्धिहेडं अप्पाणं केण घाएमि ? ॥३०॥ अहवा अप्पवहेणं इच्छइ जो पावसद्धि मइमढो । सो पंकेण विसुद्धिं इच्छइ मयलाण वत्थाणं ॥३१।। एवं उव्विग्गमणो तेसिं चोराण मज्झमवहाय । सुहकम्मपरिणईए वसेण उज्जाणमणुपत्तो ॥३२॥ पेच्छइ तत्थ मुणीन्दे उवसमखीरोयपन्निमाचन्दे । सज्जायज्झाणपरे पुव्वज्जियपावकम्महरे ॥३३॥ तारागणाण मज्झे जह चन्दो गयणमण्डले भाइ । तह तेण गुरू दिट्ठो दिप्पन्तो साहुमज्झम्मि ॥३४।। गन्तूण तस्स समीवे दढप्पहारी पमोयभरभरिओ । पणमियपायारविन्दो आसीणो धरणिवट्टम्मि" ॥३५॥ विन्नायतम्मणेहिं अइसइनाणीहि तेहिं पारद्धा। संसारजलहितरणी धम्मकहा भव्वकन्नसुहा ॥३६।। "संसारम्मि अपारे पारावारे भमन्तजीवाण । मोहमहानिवदलणी दुल्लहा चउरंगसामग्गी ॥३७॥ 15 20 25 Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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