Book Title: Jayantiprakaranvrutti
Author(s): Malayprabhsuri, Chandanbalashreeji
Publisher: Shrutgyan Prasarak Sabha

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Page 411
________________ ३७४ 10 जयन्तीप्रकरणवृत्तिः । गाथा २५।२६ जिणदत्तगुणावज्जियहियएण धणेण पुच्छिया गुरुणो । तेहि वि अणणुन्नाए पडिसिद्धो तेण जिणदत्तो ॥५९।। सविसाओ तो पत्तो निययपुरे अज्जिऊण बहुदव्वो । एइ पुणो चंपाए माहणविज्जत्थिवेसेण ॥६०॥ उज्झायस्स समीवे गन्तुं सो भणइ विणयपणयपओ । अहमागओऽम्हि विज्जापढणत्थं तुम्ह पयमूले ॥६१।। जणणीजणयसमाणो विज्जत्थीणं तुमं ति सुहकित्ती । देसन्तरेसु पसरइ ससिसंखसमुज्जला जेण ॥६२॥ इय विन्नत्ते तेणं उज्झाओ भणइ वच्छ ! पाढइस्सामि । भोयणसामग्गि पुण मग्गसु धणसत्थवाहं ति ॥६३।। अन्ने वि धम्मचट्टा जम्हा भुज्जन्ति तस्स गेहम्मि । तेणुत्तं तुह वयणा से दाही सिट्ठी त्ति पइदियहं ॥६४॥ तव्विणयरंजिएणं उज्झाएणं घरम्मि सिट्ठिस्स । सो नीओ तो सेट्ठी वोत्तो अज्झावएणेवं ॥६५॥ देसन्तराओ पत्तो विज्जत्थी तुम्ह भोयणेणेस । निच्चिन्तो पढइ सुहं तुम्हाणं होउ सेयं ति ॥६६॥ धणसिट्ठिणा वि भणिया धूया हारप्पहा समीवत्था । निच्चं इमस्स वच्छे ! दायव्वं भोयणं तुमए ॥६७।। हरिसेणेसो चट्टो चिन्तइ सुवे घयं पलुटुं ति । तिकढियदुद्धे निद्धे अचिंतिओ सक्करापाओ ॥६८॥ अहवा वल्लूरेणं मज्जारो दामिओ जहा सुहिओ । होइ तहाऽहं मन्ने होक्खामि सुही लहुं चेव ॥६९॥ इच्चाइ चिन्तिऊणं निच्चं कुसुमेहिं परिणयफलेहिं । हारप्पहं कुमारि उवयरइ वियड्डवयणेहिं ॥७०।। अक्खइ अक्खाणाई मयणानलइन्धणाई विविहाई । कन्दप्पदीवणं तह कुणइ पगब्भं च परिहासं ॥७१।। 15 20 25 Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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