Book Title: Jayantiprakaranvrutti
Author(s): Malayprabhsuri, Chandanbalashreeji
Publisher: Shrutgyan Prasarak Sabha
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जयन्तीप्रकरणवृत्तिः । गाथा २५।२६
३७५ तो कइवयदिवसेहिं पारिहासब्भासपासपडिबद्धा ।
विद्धा पञ्चसरेहिं मोहणमाईहिं बाणेहिं ॥७२।। अन्नं च
अणुदियकुसलं परिहासपेसलं लडहवाणिदुल्ललियं । आलवणं चिय महिलाण मोहणं किं त्थ मूलीहिं ? ॥७३॥ अणुदियहं वट्टन्तं परिहासे विविहपयडियविलासे । अब्भासट्ठियं पुरिसं लय व्व पमया पवज्जंति ॥७४।। ता मयणपरिवसाए गाहापढमक्खरेहिं जिणदत्तो।
वोत्तो कहिए सव्वे वुत्तन्ते हिट्ठचित्ताए ॥५॥ तद्यथा
"हसियं तुह हरइ मणं रमियं पि विससओ न सन्देहो । मयणग्गितावियाऽहं मं निव्व व संगमजलेण" ॥७६|| जिणदत्तो पुण जम्पइ अणुरत्ता जइ वि तं सि मज्जुवरि । तह वि य अदिन्नकन्ना परिणयणे अत्थि नियमो मे ॥७७।। कज्जं परिवाडीए कीरन्तं होइ सुहयपरिणामं । इहपरलोयविरुद्धं बुहेहि रहसा न कायव्वं ।।७८।। ता तह करेसु सुन्दरि ! सिट्टी देइ मज्झ सयमेव । तीए भणियं किं पुण ? करेमहं कहसु तं चेव ॥७९॥ तो जिणदत्तो जम्पइ गहगहिया होसु तं कवडसहिया । महमन्ततन्तजन्तप्पओगओ तुह गुणे जाए ॥८०॥ सिट्ठी तुट्ठो सयमवि दाही ललियंगि ! मज्झ तं मन्ने । इहपरलोयसिद्धी एवं चिय होइ मह बुद्धी ॥८१॥ इय अन्नुन्नं मन्तिय अन्नदिणे सा गहिल्लिया होइ । असमज्जसाइ जम्पइ दुटुं चिटुं कुणइ सव्वं ॥८२॥ सिट्ठी वि धणो दटुं हारप्पहं निप्पहं नियं तणयं । परमत्थमयाणन्तो अच्चन्तं आउलीहूओ ॥८३।। चिन्तइ हा दइव तए कह सहसा एरिसी कयावत्था । एयाए तणयाए निम्मलगुणरयक्खाणीए ॥८४।।
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