Book Title: Jayantiprakaranvrutti
Author(s): Malayprabhsuri, Chandanbalashreeji
Publisher: Shrutgyan Prasarak Sabha

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Page 405
________________ ३६८ जयन्तीप्रकरणवृत्तिः । गाथा २५।२६ आरुटेणं तेणं तीए चरियं पउत्थवइयाए । धणसत्थवाहपेमाणुबन्धरमणीयमह रइयं ॥३३।। जह एस सत्थवाहो पत्तो देसन्तरम्मि पइदियहं । धणलाभे वि महन्ते सुमरइ भदं नियघरिणि ॥३४।। एसा विउला लच्छी तुच्छ च्चिय पणइणीए भद्दाए । विरहहुयासणतावे कह सन्तोसं कुणउ मज्झ ? ॥३५।। चिरविरहदुब्बलंगी मह संगमजलहरेण लइय व्व । पुलयंकुरेहिं कइया ? सव्वंगसुन्दरा होही ॥३६।। पेमाणुबन्धदुद्धोदहिस्स लहरीहिं हसियकडक्खेहिं । विरहग्गीतावहरणी कइया मइ वल्लहा होही ? ॥३७॥ एवमणेगमणोरहरहेहि निच्चप्पयाणयविहीए । एइ धणसत्थवाहो भद्दासंगमकओम्माहो ॥३८॥ न रुई जायइ कहमवि तस्साहारेसु नन्नदारेसु । पेमाणुबन्धवसओ हियए भदं वहन्तस्स ॥३९।। एवं उम्माहेणं इन्तो सो सम्पयं पहायम्मि । घरदारे सम्पत्तो खेमेणं सत्थवाहो त्ति ॥४०॥ इय चरियं गुम्फेउं पच्छिमरयणीए तीए आवासे । गंतूण पुष्फसालो गायइ किन्नरसरेणसो ॥४१॥ गीएण तेण महुरस्सरेण सरसेण अमियसरिसेणं । भद्दा जग्गइ चिन्तइ किमेस सग्गाओ उवइन्नो ? ॥४२॥ धणसत्थवाहनामे कन्नपविट्ठम्मि हिययइम्मि । मह पाणनाहचरियं गायइ एसो महच्चरियं ॥४३।। एवं साणन्दाए भद्दाए पाणनाहचरियम्मि । गाइज्जन्ते महुरं निसुयं जह एस मज्झ पिओ ॥४४॥ घरदारे सम्पत्तो तत्तो उम्माहपरवसा एसा । उब्भुट्ठिऊण मुञ्चइ अप्पाणं वासभवणाओ ॥४५॥ 15 2. 25 Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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