Book Title: Jayantiprakaranvrutti
Author(s): Malayprabhsuri, Chandanbalashreeji
Publisher: Shrutgyan Prasarak Sabha

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Page 408
________________ ३७१ जयन्तीप्रकरणवृत्तिः । गाथा २५।२६ तह कामबाणविद्धो सा तीए रूवलच्छीए । पुच्छइ कस्सइ पासे कस्सेसा कहसु वरतरुणी ॥२०॥ तेण वि कहियं रन्नो अभग्गसोहग्गसम्पयासहिया । लायन्नपुन्नदेहा पाणप्पिया धारिणी नामा ॥२१॥ तव्वयणस्सवणेणं घयमहुसित्तु व्व मयणजलणो से । दिप्पन्तो सन्तावं जणइ महन्तं तयंगम्मि ॥२२॥ दुल्लहवत्थुम्माहो दाहो जीवाण जलणविरतेऽवि । जाओ अप्पडियारो विवेयवररयणसंहारो ॥२३॥ तीए संगमरसिओ उवायचिन्तापिसाइयागसिओ । आवणमेसो गिन्हइ रायगिहासन्नभूमीए ॥२४॥ अन्तेउरदासीओ आसन्ने तम्मि आवणे इन्ति । किणणात्थं पयदियहं कप्पूराईण वत्थण ।।२५।। सो वि धणड्डवियड्डो विचित्तभंगेहिं महुरवयणेहिं । आवज्जइ दासीओ पहाणबहुगन्धदाणेण ॥२६॥ सो पुच्छइ तुम्हाणं धारिणीदेवीयसन्तिया काओ ? । इय पुढे कहियाओ जाओ तासि मुहा देइ ॥२७॥ तो हिट्ठा तुट्ठाओ ताओ गन्तूण धारणिं देवि । बहु विन्नवन्ति सामिणि ! एसो वणिओ अइउदारो ॥२८॥ एयाए नयरीए अन्नो लायन्नपुन्नसम्पन्नो। अइमहुरललियवाणी नत्थि वियड्ढो धणड्डो य ॥२९॥ अह अन्नदिणे तेणं ताओ पुट्ठाओ गन्धपुडियाओ। एयाओ कस्स करे मयप्पियाओ समप्पेह ? ॥३०॥ ताहिं पि तओ कहयं एयाओ तुम्ह गन्धपुडियाओ । देवीए धारिणीए हत्थे नन्नस्स अप्पेमो ॥३१॥ एवं नायसरूवो दिवसे एगम्मि गन्धपुडियाए । मज्झम्मि खिवइ लेहं नेहं जाणाविउं मुद्धो ॥३२॥ Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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