Book Title: Jayantiprakaranvrutti
Author(s): Malayprabhsuri, Chandanbalashreeji
Publisher: Shrutgyan Prasarak Sabha
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जयन्तीप्रकरणवृत्तिः । गाथा २५।२६ अह अच्चन्ते काले निक्कण्टकं रज्जमणुहवन्ताणं । ताणं पणयपराणं महुमासमहूसवो पत्तो ॥७॥ जम्मि मलयानिलेणं मउरिज्जन्तेसु अम्बयवणेसु । इन्ति सिरिनेउरारवमहुरं रहन्ति भमरीओ ॥८॥ कोइलकलावकोमलकलयलदंभेण पंचमं रायं । गाइन्ती महुलच्छी सोहग्गं लहइ लहु निहुयं ॥९॥ पसरन्ति चच्चरीओ अवरावरचच्चराइट्ठाणेसु । तरुणतरुणीण जासुं नज्जइ सग्गो समोइन्नो ॥१०॥ सिंगारसारतरुणीपायपहारेण जत्थ पुप्फन्ति । परिपूरियदोहलया रत्ता किंकिल्लितरुनिवहा ॥११॥ बहलमयरन्दसन्दिरमायन्दसुयंधिमंजरीहत्थो । पिच्छइ अत्थाणगयं रायं आरामिओ तत्तो ॥१२।। पणमित्तु पायपउमं अप्पइ सहयारमंजरं रन्नो । विन्नवइ देव ! पिच्छह महुम्मि उज्जाणवरलच्छि ॥१३॥ जेणं नयरजणाणं रज्जे तुह देव ! सुत्थियमणाणं । विलसन्ताणं लच्छि सामिसमक्खं हवइ तोसो ॥१४॥ तत्तो जियसत्तू निवो गच्छइ अन्तेउरेण परियरिओ। सामन्नमन्तिमण्डलसामग्गीए समिद्धीए ॥१५।। गच्छइ उज्जाणवरे देवी वि हु धारिणी सपरिवारा । आरूढनरविमाणा देवंगच्छाइयसरीरा ॥१६॥ तीए गच्छन्तीए महरावत्थव्ववणियपुत्तेण । दिट्ठो महेसरेणं पायंगुट्ठो अइविसिट्ठो ॥१७॥ तो चक्खुलोलयाए चिन्तइ सो मयणबाणविद्धमणो । जीए अंगुट्ठो वि हु एवं लावन्नसम्पुन्नो ॥१८॥ तीए तिहुयणअहिया मन्ने सव्वंगरूवसम्पत्ती । जइ मह इमीए लाहो न होइ ता निष्फलो जम्मो ॥१९॥
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