Book Title: Jayantiprakaranvrutti
Author(s): Malayprabhsuri, Chandanbalashreeji
Publisher: Shrutgyan Prasarak Sabha

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Page 393
________________ ३५६ जयन्तीप्रकरणवृत्तिः । गाथा २३ पिच्छइ दढप्पहारी तं विप्पं चोरघायणुज्जुत्तं । तो कुणइ विगयपाणं निसियकिवाणं करे काउं ॥१२॥ आपाव कीस तुमए कीणासमुहम्मि माहणो खित्तो ? । एयस्स घायणेणं अम्हं च डिम्भाणि य हयाइं ॥१३।। एयाहिं हच्चाहिं चिञ्चइयतणुस्स तुह मयस्सावि । जलणो वि न हु जलिस्सइ सुलहो नरए वि न पवेसो ॥१४|| हा दुट्ठ धिट्ठ पाविट्ठ चिट्ठ कटुं तए तमिह दिन्नं । दालिद्ददवो जेणं होही जालावलीकलिओ ॥१५॥ हा कोणास विलम्बसि कीस ? तुमं जेण एस जीवाणं । दुहदन्दोलि दिन्तो जमपन्थे नेसि ? न हु सिग्धं ॥१६॥ तुम्हारिसाण कुधफंसणाण पावेण अइदुहभरक्कन्ता । जाइस्सइ पायालं मन्ने सव्वंसहा अहुणा ॥१७।। इच्चाइयवयणाई पुणरुत्तं माहणी वि जम्पन्ती । तेणाऽसिणा हया सा सह गब्भेण दुखण्डभूएण ॥१८॥ पुणरुत्तफुरफुरन्तं गम्भं दद्रुण पाडिसिद्धीए । तस्स वि हिययं कम्पइ दारुणदुक्कम्मभरभरियं ॥१९॥ तो कम्मपरिणईए चित्ताए तस्स होइ अणुतावो । पगरिसपत्तो सोसइ जीवसरे पावजम्बालं ॥२०॥ "सो निन्दन्तो रूढं घणवाहजलेण तयणु नियक्खित्ते । दुच्चरियसस्सं सिञ्चइ तह जह अहलं हवइ सयलं ॥२१॥ किञ्च आजम्माओ कयाइं मए दुरन्ताइ पावकम्माइं । अहह अणिट्ठियदुग्गइपहेसु पाहेयभूयाई ॥२२॥ हिंसाइएसु अट्ठारसेसु ट्ठाणेसु भवणे रूढा । पावविसपायवा मह अणन्तरमरणाई दाहिन्ति ॥२३॥ माहणकुले वि जाओ हणामि जीवाण दसविहे पाणा । कुलदूसणो किमन्नो ? ममाउ पावो हवइ लोए ॥२४॥ 20 . 25 Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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