Book Title: Jayantiprakaranvrutti
Author(s): Malayprabhsuri, Chandanbalashreeji
Publisher: Shrutgyan Prasarak Sabha

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Page 395
________________ ३५८ 10 जयन्तीप्रकरणवृत्तिः । गाथा २३ उक्तं च "चत्तारि परमंगाणि दुल्लहाणीह जंतुणो। माणुसत्तं सुइ सद्धा संजमम्मि य वीरियं" ॥३८॥ [ उत्तरा० ३।१] दलियब्वो मोहनिवो जस्स पभावेण मूढमणपसरा । जीवा धम्माधम्मं गम्मागम्माइं न मुणन्ति ॥३९।। अमुणन्ता पञ्चासवपसत्तचित्ता भवन्धकूवम्मि । पडिया पभूयकालं लहन्ति दुक्खाइं तिक्खाई ॥४०॥ गिरिसरिओवलङ्घसणसरिसेण अहापवत्तकरणेण । कम्माण लाघवेण लद्धे चउरंगए सम्मं ॥४१।। संजमलच्छीसंगमनिव्वुइसुहसंपयं लहेउणं । कयकिच्चेहिमणंतं कालं जीवेहिं हायव्वं ।।४२।। सो धीरो सो वीरो दढप्पहारिरी?) विभावउ सो उ । जो अंतरंगकम्मारिवग्गं सुग्गं दलइ सहसा ॥४३॥ ता सोम तुमं संजमभरधारणधोरिओ हवसु जेण । उल्लंघियभवमग्गो लोयग्गपयट्ठिओ होसि ॥४४॥ चिरकालसञ्चियाइं खणेण दारूणि दहइ जह अग्गी । अहवा रयणीतिमिरं हरइ जहा सूरकरपसरो ॥४५।।। तह संजमो वि सुन्दर ! पालिज्जन्तो तिहा विसुद्धीए । निहणइ सव्वं सिग्धं अणन्तभवसञ्चियपावं" ॥४६॥ इय धम्मदेसणाए दिणमणिकिरणावलीसगोत्ताए । चारित्तमोहणीयं नवणीयं लहु विलीणं सो ॥४७|| उल्लसियरोमकूवो भवकूवा निग्गयं व अप्पाणं । मन्नन्तो पडिवज्जइ चिन्तामणिचारुचारित्तं ॥४८।। तो गहियदुविहसिक्खो पइदिणवियसन्तसुदिढसंवेगो । एसो दढप्पहारी अभिग्गहं लेइ गुरुमूले ॥४९।। "सुमरामि जाव भयवं पावमिमं गब्भघायपज्जन्तं । ता चउव्विहमाहारं न करिस्सं सन्तपरिणामो ॥५०॥ 20 25 Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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