Book Title: Jayantiprakaranvrutti
Author(s): Malayprabhsuri, Chandanbalashreeji
Publisher: Shrutgyan Prasarak Sabha
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जयन्तीप्रकरणवृत्तिः । गाथा २४ साणन्देणिन्देणं तुज्झ पसंसा सुराण मज्झम्मि । जेण कया तेणाहं समागओ देवलोगाओ ॥५१॥ अन्नाणन्धेण मए तुज्झ परिक्खानिमित्तमायरियं । जमिह तए खमियव्वं मुणिन्द ! महचिट्ठियं तं तु ॥५२॥ ताविज्जन्ते वि बहुं कणगे अहियं हवेइ जह सुद्धी । तह तुहुवसग्गे वि हु अभिग्गहे निम्मला बुद्धी ॥५३।। आयरियगिलाणाईसु वच्छल्ले सल्लइवणनिउज्जे । मुणिकुज्जर तुज्झ रुई सहावओ निच्चला चेव ॥५४॥ दुग्गोवसग्गवग्गे खमावहे कायराण दुल्लंघे । उक्खित्तभारनिव्वहणे सच्चं मुणिपुंगवो तं सि ॥५५।। दूरिकयमयपसरो गुरुमाणकरिन्दविन्दनिद्दलणो । मुणिसीह वससि जुत्तं गुरुकुलवासे गुहावासे ॥५६।। वेयावच्चे नियमो मेरुगिरिन्दो व्व निच्चलो तुज्झ । किं चोज्जं ? विबुहाण वि जं संथवगोयरो होइ ।।५७।। धन्नो सि तुमं मुणिवर तुज्झ सलद्धो य माणुसो जम्मो । तुमे तं खमियव्वं अवरद्धं जं मए तुज्झ" ॥५८।। इय संथवणं काउं हिट्ठो संतुट्ठमाणसो देवो । नमिऊण नन्दिसेणं जहागयं पडिगओ झत्ति ॥५९॥ सो वि मुणी पुरमज्झे साहूहि उवासयम्मि पविसन्तो । पुट्ठो कहिं गिलाणो ? कहइ इमं देवमाय त्ति ॥६०।। एवं जयंति ! कुलगणगिलाणगुरुसेहबालवुड्डाणं । वेयावच्चविहाणे सेयं चिय होइ दक्खत्तं ॥६॥
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दक्षत्वे नंदिषेणाख्यानकं समाप्तम् ॥
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