Book Title: Jayantiprakaranvrutti
Author(s): Malayprabhsuri, Chandanbalashreeji
Publisher: Shrutgyan Prasarak Sabha

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Page 385
________________ ३४८ 10 जयन्तीप्रकरणवृत्तिः । गाथा २२ एसो विन्नवइ तओ भयवं ! मूलम्मि अज्जवयराण । आइट्ठ म्हि गुरूहिं पढणत्थं दिट्ठिवायस्स ॥३६।। जुत्तमिणं किन्तु इहं, अम्हाणं उत्तमट्ठकप्पमिमं । पडिवज्जिउकामाणं तुब्भे निज्जामगा होइ ॥३७।। आएसु त्ति भणित्ता विहिणा निज्जामिआ तओ तेहिं । भिन्नवसहीए तुमए पढियव्वं रक्खिओ भणिओ ॥३८॥ गच्छइ कमेण पासे दसपुव्वधराण अज्जवयराण । रयणीए पुरबाहिं वसिओ भिन्नाए वसहीए ॥४०॥ पिच्छन्ति अज्जवइरा पभायसमयम्मि सुमिणयमम्हं । पत्तम्मि पयं पीयं आएसेणं न सव्वं तु ॥४१॥ जागरिएहिं सुमिणे कहिए अन्नन्नफलवियारम्मि । साहूहि कए वयरा गुरूणो जम्पन्ति परमत्थं ॥४२॥ पाडिच्छओ अवस्सं को वि कुओ आगमिस्सइ पभाए । सो पढिस्सइ सुत्तं अचिरेणं न उ असेसं पि ॥४३॥ एवं ति मुणिवरेहिं पडिस्सुयं सुत्तपोरसिसमए । निस्सीहिं कुणन्तो समागओ रक्खिओ तयणु ॥४४॥ वन्दन्तो विहिपुव्वं आलविओ अज्जवयरसामीहिं । किं रक्खिओ सि ? कत्तो केणत्थेणऽत्थ सम्पत्तो ? ॥४५॥ आमं ति भणेऊणं भणइ इमो दिट्टिवायगहणत्थं । तोसलिपुत्तगुरूहि आइट्ठो तुम्ह पासम्मि ॥४६॥ अज्जवयरेहि भणिओ कहं ट्ठिओ नयरबाहिरवसहीए ? । इइ वोत्ते सो भणिओ पढियव्वं होइ किं एवं ? ॥४७॥ तेणुत्तं जे तुब्भे भणह तहा तं ति किन्तु आइटुं । भिन्नवसहीए ट्ठाणं पुज्जेहिं भद्दगुत्तेहिं ॥४८॥ सुगुरूणं आएसे अवस्समिह कारणेण होयव्वं । उवउत्तेहिं तेहिं तत्तो जुत्तं ति संलत्तं ॥४९।। 20 25 Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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