Book Title: Jayantiprakaranvrutti
Author(s): Malayprabhsuri, Chandanbalashreeji
Publisher: Shrutgyan Prasarak Sabha
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जयन्तीप्रकरणवृत्तिः । गाथा २२ गुरुगच्छगयणमंडलभूसणससिमंडलेण तेण इमं । जिणवयणं कुमुयवणं पयासियं पुहवीसरसीए ॥६३॥ अवरविदेहे सिरिसीमंधरसामिजिणवरसयासे । सोच्चा निगोयजीवे सक्को पुच्छेइ किं अहुणा ? ॥६४।। भयवं भरहे चिट्ठइ गणहारी कोइ कहइ किं ? सम्मं । एए निगोयजीवे केवलनाणीण विरहम्मि ॥६५।। तो भयवया वि भणियं संति तहिं अज्जरक्खियमुणिन्दा । जेसिं निगोयकहणे सत्ती सुयनाणलद्धीए ॥६६॥ तो कोउगेण इन्दो आगच्छइ ताण पायमूलम्मि । माहणरूवो पुच्छइ मह आउं कित्तियं अत्थि ? ॥६७।। उवउत्तेहिं नाओ सरराओ एस इसिं हसिऊण । सक्को तुमं ति भणिए हिट्ठो चलकुण्डलाहरणो ॥६८॥ होऊणं वन्दित्ता निगोयजीवाण पसिणवागरणे । हिट्ठो कयपणामो जेसिं गुरूणं सुरिन्दो वि ॥६९।। अवरविदेहे सीमन्धरसामिजिणसरेण परिकहिए । तुम्हसरूवे भयवं ! इहागओऽहं त्ति कहिऊण ॥७०॥ गन्तुमणो सुगुरूहि चिट्ठसु तं जाव साहुणो इन्ति । मं दट्टण नियाणं मुणिणो काहिन्ति तो जामि ॥७१।। जक्खगुहाए दारं अन्नंमुहं ट्ठाविऊण तो एसो । साहूण पच्चयत्थं जहागयं पडिगओ सिग्घं ।।७२।। तेसि सिरिअज्जरक्खियसूरीण गुणाण कन्दधवलाण । सव्वाण वन्नणे किं सत्ती ? छउमत्थजीवाण ।।७३।। गच्छम्मि तेसि गरुए मुणिरयणुप्पत्तिरोहणगिरिम्म । दुब्बलियपुस्समित्तो सुयमाणमहोयही जाओ ॥४॥ घयवत्थपुस्समित्ता अन्ने वि य दुन्नि मुणिवरा तत्थ । उवटुंभकरा जाया सबालवुड्डम्मि गच्छम्मि ॥७५।।
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