Book Title: Jayantiprakaranvrutti
Author(s): Malayprabhsuri, Chandanbalashreeji
Publisher: Shrutgyan Prasarak Sabha
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३५१
जयन्तीप्रकरणवृत्तिः । गाथा २२
गामागरनगरेसु विहरन्ता अज्जरक्खियमुणिन्दा । दुब्बलियपुस्समित्तस्स सयणनिवासे पुरे पत्ता ॥२६॥ सयणा वि बुद्धदंसणभावियमइणो भवन्ति जिणवयणे । तणुदुब्बल त्ति हेऊ किरइ कटुं तवच्चरणं ॥७७।। जं अम्ह एस सयणो साहू अइदुब्बलो दयट्ठाणं । तो किं कट्ठतवेणं ? झाणं चिय मुक्खहेऊ त्ति ॥७८।। तं पुण ज्झाणं सम्मं झाइज्जइ बुद्धदंसणे चेव । कम्मवणदहणहूयवहसहोयरं होइ जं अइरा ॥७९॥ तो अज्जरक्खिएहिं गुरूहिं करुणापवन्नहियएहिं । महुरक्खरवयणेहिं भणियं सम्बोहणट्ठाए ॥८०।।। अरिहन्तपवयणे च्चिय ज्झाणं भवजलहिसेउसंट्ठाणं । जेणेस दुब्बलतणू निच्चं अइनिद्धभोई वि ॥८१॥ को पच्चओ त्ति ? तेहिं भणिए वुत्तं गुरूहि तयहत्तं । अइसरसभोयणेण उवयरिव्वो बहुं एस ॥८२॥ अम्हे पुण विहरामो अवरावरदेसनयरगामेसु । उवचियदेहावयवो तुज्झेहिं एस कायव्वो ॥८३।। अन्नत्थ विहरिऊणं सुइरं पच्चागया किसं साहुं । दुब्बलियपुस्समित्तं दटुं जम्पन्ति ते गुरूणो ॥८४।। कह तुम्हाण समीवे ठुविओ वि अइसरसभोयणेणावि । स विसेसकिसो जाओ? तो बुज्झह झाणमाहप्पं ॥८५॥ पिच्छह संपइ झाणं मुत्तूणं रूक्खतुच्छभोई वि । होही उवचियदेहो तुम्हाणं पच्चओ एसो ॥८६।। तो सयणाण समक्खं एसो भणिओ गुरूहि पइदिवसं । गिन्हसु लुक्खाहारं कुणसु तुमं झाणपरिहारं ॥८७॥ इच्छामि त्ति भणित्ता तेण तहाणुठ्ठियम्मि गुरुवयणे । अमयरससेयसरिसे पल्लवियं तस्स अंगेहिं ।।८८||
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