Book Title: Jayantiprakaranvrutti
Author(s): Malayprabhsuri, Chandanbalashreeji
Publisher: Shrutgyan Prasarak Sabha
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जयन्तीप्रकरणवृत्तिः । गाथा २२
तो तोसलिपुत्ताणं गुरूण दिट्ठीए अमयवोट्ठीए । सो आगमेसिभद्दो पुलयंकुरुराइरुइरंगो ॥२४॥ ढड्डरसद्दणुसारी दक्खो विहिणा पडिक्कमइ ईरियं । वन्दियगुरुपयकमलो वन्दइ साहूण पयपउमे ॥२५॥ उवलक्खिओ गुरूहि ढड्डरसड्डस्स वन्दणमहितो । एसो को वि महप्पा अहिणवपडिवन्नधम्मो त्ति ॥२६॥ आपुच्छिओ गुरूहिं सोम ! कओ तुम्ह धम्मपडिवत्ती ? । तेण विणयेण वोत्तं ढड्डरसड्ढाउ एयाउ ॥२७॥ साहूहिं तओ कहियं एसो अज्जरक्खिओ भयवं ! । जस्सागमणे राया नायरलोओ वि सन्तुट्ठो ॥२८॥ तत्तो गुरूण पणओ विन्नत्तिं कुणइ रक्खिओ सक्खं । इच्छामि दिट्ठिवायं पढिउमहं तुम्ह पयमूले ॥२९।। दिक्खापडिवत्तीए पढियव्वो सोम दिट्ठिवाउ त्ति । भणिए गुरूहि जम्पइ दिज्जउ दिक्खा वि मह सिग्धं ॥३०॥ तत्तो वियन्नदिक्खो आइक्खइ रक्खिओ जहा भयवं । इह सयणजणो राया धणियं असमञ्जसं काही ॥३१॥ देसन्तरम्मि गम्मउ सुत्थं सव्वं पि होइ जह तत्थ । जुत्तं ति तओ गुरूणो सिग्धं देसन्तरं पत्ता ॥३२॥ एसा हु इत्थ तित्थे महल्लकल्लाणकारणा नच्चा । सिस्सस्स सुहगुरूहिं पढमा निप्फेडिया विहिया ॥३३|| एक्कारस अंगाई कइवयपुव्वाइं तत्थ पढिऊणं । अज्जवयराण मूले पढणत्थं जाइ गुरू भणिओ ॥३४॥ एत्तो उज्जेणीए तत्थ य चिट्ठन्ति अज्जभद्दगुरू । आभासिओ य तेहिं वन्दन्तो रक्खिओऽसि ? त्ति ॥३५।। आमं ति तेण भणिए गुरूहि उववुहिऊण अइबहुयं । केणटेणं ? सम्पइ पट्ठविओ कत्थ इय भणिओ ॥३६।।
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