Book Title: Jayantiprakaranvrutti
Author(s): Malayprabhsuri, Chandanbalashreeji
Publisher: Shrutgyan Prasarak Sabha

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Page 378
________________ ३४१ 10 जयन्तीप्रकरणवृत्तिः । गाथा १९।२०।२१ अहवा सहत्थरोवियदुकम्मसाही दुहिक्कफलदाई । होइ च्चिय जीवाणं को सक्कड ? अन्नहा काउं ॥४५॥ किं बहुणा सन्निहिए राहुम्मि नरए घोरन्धयारपसरम्मि । सहसा कम्पियमणो राया कसिणच्छवी जाओ ॥४६।। पुच्छइ निवो भयवं ! तुमम्मि कारुन्नपुन्नभत्तीए । आराहिए वि जिणवर ! नरए पडणं कहं मज्झ? ॥४७॥ देवाहिदेव तुमए तिहुयणपहुणा अणन्तवीरिएण । पयलग्गो वि पडन्तो नरए रक्खिज्जए न कहं ? ॥४८॥ उवलद्धे सम्मत्ते टुइयाई तिरियनरयदाराई । एयम्मि तुम्ह वयणं न हवइ सहलं कहं ? नाह ! ॥४९॥ भयवं पि भणइ नरवर ! अवस्सभवियव्वं हवइ चेव । इत्थ पहुणो वि ससक्का न हु सक्का अन्नहा काउं ॥५०॥ नरयाउयम्मि बद्धे आरंभाईहिं अइमहल्लेहिं । सम्मदंसणरयणं पच्छा तुमए पत्तं महाराय ! ॥५१॥ कहमवि अदत्तफलयं कम्मं चारित्तसम्पओगे वि । दुहजलहिपारगमयं न होइ निव ! जाणवत्तं व ॥५२।। पच्चा सम्पत्तेण वि पढमो उस्सिप्पिणीए तित्थयरो । तं राय ! पउमनाहो होहिसि सम्मत्तरयणेण ॥५३।। नरयभयमोहजोहक्कन्तमणो सेणिओ भणइ । नाह ! कहसु तुम तमुवायं न लहेमि जओ नरयवायं ॥५४॥ मूढहिययस्स सेणियनिवस्स संबोहणत्थमाह जिणो । महिसाणं पंचसए निहणन्तं कालसोयरियं ॥५५॥ एगदिवसं पि रक्खसि जइ तं नरनाह दिव्वजोगेण । तोऽवस्सं नरयगई न होइ तुम सोम ! दुहहेऊ ॥५६।। इच्चाइ जिणवरेणं वोत्ते नमिऊण सेणियनरिन्दो । रायगिहं सम्पत्तो हक्कारइ कालसूयरियं ।।५७।। 15 25 Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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