Book Title: Jayantiprakaranvrutti
Author(s): Malayprabhsuri, Chandanbalashreeji
Publisher: Shrutgyan Prasarak Sabha

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Page 296
________________ २५९ जयन्तीप्रकरणवृत्तिः । गाथा ४।५।६ तम्हा ति च्चिय धन्ना रमणीरागेण लद्धपसरेण । कहमवि न हु रंजिज्जइ संखसमाणो मणो जाण ॥४२॥ सुहल च्चिय जियलोए चिंतामणिकामधेणुकप्पदुम्मा । एक्कं चिय अइदुल्लहं सीलं ससिसंखदलधवलं ॥४३॥ एसा वि भाउजाया पन्नवणिज्जा न होइ निलज्जा । जं कामग्गहो दुट्ठो दुनिग्गहो मन्ततन्ताण ॥४४॥ तो सीलरयणरक्खासुलद्धलक्खेण दक्खपुरिसेण । छलिऊण गहो एसो ठाणट्ठिओ चेव धरियव्वो ॥४५॥ इच्चाइ विवेएणं सुहाणुभावेण तस्स लीलाए । विसयविसविसममुच्छा अवगच्छइ सव्वहा तत्तो ॥४६॥ अवलम्बियदिढसत्तो तयभिमुहं भणइ सो अरिहमित्तो । किज्जन्तु ताव भद्दे ? बन्धवपरलोयकिच्चाई ।।४७।। परिपाडीए कज्ज तुहिच्छियं कुच्छियं ति पच्छन्नं । धम्मो च्चिय कीरन्तो पयडो सोहं समुव्वहइ ॥४८॥ ता होसु थिरा सुन्दरि ? मन्दरचूल व्व लोयमज्झत्था । असरिसकल्लाणमई समुन्नई लहसि जेण तुमं ॥४९।। सभासिऊ एवं रयणीए सीलरक्खणुज्जुत्तो । अइ तुरियमरिहमित्तो एसो देसन्तरं पत्तो ॥५०॥ एगम्मि तत्थ नयरे उज्जाणे महुरवाणिसवणेण । अक्खित्तो जा गच्छइ ता पेच्छइ पुन्नभावेण ।।५१।। सिरिधम्मघोससूरिं तेएणं दिणमणि व्व दिप्पन्तं । दिन्तं निहयतमोहं पडिबोहं भवियकमलाण ॥५२॥ निन्ततमभमरनियरुच्छलन्तझंकारमहुरसद्देण । विन्नत्तो तेण गुरू पबुद्धमणपंकएण तओ ॥५३॥ सुपभायमज्ज भयवं ! जं तुह पायाण संगमेणाऽहं । दिढे सिवपुरमग्गे पडिवन्नो चरणपरिणामं ॥५४॥ Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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