Book Title: Jayantiprakaranvrutti
Author(s): Malayprabhsuri, Chandanbalashreeji
Publisher: Shrutgyan Prasarak Sabha
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३२४
जयन्तीप्रकरणवृत्तिः । गाथा ४।५।६ उम्मत्ततरुणिमयरसा गंडूसा सायरेण कोरकिओ। जंपइ बउलो तेसिं परिमलमिलियालिज्झंकारो ॥६९।। गन्धोदएण सित्ता चम्पयपन्ती वि फुल्लसिहररग्गा । कुंकुमच्छडाभिसेया पयवी व उविन्तमयणस्स ॥७०॥ तिलयडुमा वि रमणीसकामदिट्ठीहिं अमयबुद्धिहिं । सोहंति बहलपुलया उम्मीलियकुसुमपब्भारा ॥७१॥ विरहतरुणोऽवि पंचमराए गीयम्मि पुप्फसंभारा । महुयररवच्छलेणं लीणं वीणं च वायन्ति ।।७२।। विसयाहिलासरसिया एवं तरुणो वि हुन्ति महुमासे । विलसन्ति य नायरया सद्धिं तरुणीहिं कीलता ॥७३॥ अम्हं चेस किलेसो संसयदोलागयम्मि परलोए । साहीणा रायसिरी चत्ता ही मोहमाहप्पं ॥७४।। अज्ज वि न किं पि नटुं रज्जं लहिऊण भोगललियंगो । अक्खलियपयावपसरो सुहेण चिट्ठामि अणुदियहं ॥७५॥ चारित्तमोहराओ वसन्तमासच्छलेण पसरन्तो । खोहयइ गयमाहप्पं एवं निवकण्डरीयमुणिं ॥७६॥ मिच्छत्तनरिन्देणं अणन्तकोहाइबलसमग्गेणं । पउरगुणरयणपुन्नं भग्गं संजमपुरदुग्गं ।।७७॥ गच्छाओ निक्खन्तो विच्छाओ तयणु तावसन्तत्तो। जुवरायकण्डरीओ मुणिवरवेसो पुरिं पत्तो ।।७८॥ उज्जाणपालएणं विन्नत्तो पुण्डरीयनरनाहो । चिट्ठइ जुवरायरिसी एगागी देव उज्जाणे ॥७९॥ सोऊणेवं राया चिन्तइ गुरुगच्छनिग्गओ एसो ।
ओहावणाणुप्पेही महभाय कण्डरीयमुणी ॥८०॥ परिमियपरिवारेणं तमहं गन्तूण ताव पेच्छामि । नाउण तस्स चित्तं उचियं जं तं करिस्सामि ॥८१॥
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