Book Title: Jayantiprakaranvrutti
Author(s): Malayprabhsuri, Chandanbalashreeji
Publisher: Shrutgyan Prasarak Sabha

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Page 371
________________ ३३४ जयन्तीप्रकरणवृत्तिः । गाथा १४।१५।१६।१७।१८ तो सूरिणा वि वुत्तं राय तुमं मित्तभावपडिवन्नो । तेण तुह निटूररुई न सम्मदिट्ठिपहं एइ ॥१४॥ अन्नं च पडिपुन्नकलो राया ईसरपणओ न होइ कइया वि । सहगुरुतेओ किं पुण करेइ सयं वरज्जोयं ॥१५॥ कुडलिप्पकलो राया तुमं व पुण होइ उग्गजडपणओ । पुन्नकलो वि न राया तुमए पडिबोहिओ को वि ॥१६॥ एवं निवेण भणिए सूरि पडिभणइ अन्नरज्जम्मि । अणुमन्नसु मं सम्पइ गच्छन्तं रायबोहत्थं ॥१७॥ इय सूरिवरेणुत्ते राया रज्जन्तरम्मि गच्छन्तं । अणुमन्नइ सिग्धं चिय साणन्दं बप्पहट्टिगुरुं ॥१८॥ गोवगिरिनामदुग्गा विणिग्गओ बप्पहट्टिसूरी वि । अणुकूलसद्दमंगलसउणसउच्छाहपरिणामो ॥१९॥ देसे सवायलक्खे सयंभरी दिव्वपुरवरी अत्थि । तीए बप्पइराओ राया भवणम्मि विक्खाओ ॥२०॥ रायस्स जस्स गुरुबहुकविमंडलसूरपरिचियमहस्स । अच्छेरं तु सयंवरसविहवियारो न संजाओ ॥२१॥ मुत्ताहलविमलाइं गुणाणुविद्धाइं जस्स कव्वाइं । कंठम्मि कविन्देहिं साणन्देहि धरिज्जन्ति ॥२२॥ अह तम्मि पच्छिमवए लोइयधम्माणरत्तचित्तम्मि । अंगीकयसन्नासे देवयगुरुपूयणब्भासे ॥२३॥ दिज्जन्ति य दाणाइं तहा कहिज्जन्ति रिसिकहाणाई । विरइज्जइ कुससयणं पसरइ वेयाणमज्झयणं ॥२४॥ संतर[स]सिञ्चियविबुहा कुणन्ति कव्वाइं भव्वनव्वाइं । मोक्खम्मि चेव कंक्खा तिवग्गअग्गेसरे होइ ॥२५॥ गयणि व्व तम्मि गरुए कविबुहदियरायगुरुपहापसरे । सिरिबप्पहट्टिसूरी तत्तो पत्तो दिणयरु व्व ॥२६।। 15 20 25 Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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