Book Title: Jayantiprakaranvrutti
Author(s): Malayprabhsuri, Chandanbalashreeji
Publisher: Shrutgyan Prasarak Sabha

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Page 345
________________ ३०८ जयन्तीप्रकरणवृत्तिः । गाथा ४।५।६ अब्भत्थिओ वि तेणं अणुरायपरव्वसेण जिणदत्तो । वियरइ न तस्स धूयं मिच्छदिट्ठि त्ति काऊण ॥७॥ तो सो सावयधम्मं तीए लोहेण सुगुरुपयमूले । गिन्हइ पढमं तम्मि य, सद्धा सम्मं समुल्लसिया ॥८॥ जिणदत्तो वि य सेट्ठी जिणधम्मे तस्स निच्चलमणस्स । सयमेव देइ कन्नं नाऊणं सीलसब्भावं ॥९॥ अणुरूवपत्तजोगे पाणिग्गहणम्मि गुरुसमिद्धीए । उप्पज्जइ नयरीए साहुकारो चमक्कारो ॥१०॥ भणिओ य बुद्धदासो वच्छ तए सह इमो दइयाए । ट्ठायव्वमन्नगेहे जिणधम्माराहणनिमित्तं ॥११॥ जेण तुह जणणिभइणिपमुहजणो सुगयदंसणाणुगओ। पइक्खणविणासवाई असन्तकज्जोग्गमो निच्चं ॥१२॥ ता तेसि दिट्ठिराए पसरन्ते सव्वदोससमवाए । कह वीयरायधम्मो समाहिणा किज्जए ? वच्छ ! ॥१३॥ जिणधम्मे संपत्ते विवेयवन्तेहिमुज्जमन्तेहिं न हु। होइ संकिलेसो जह तह वायव्वमिह होइ ॥१४॥ उक्तं चागमे "धम्मत्थमुज्जएणं सव्वस्साऽपत्तियं न कायव्वं । इअ संजमो वि सेओ वीरजिणो एत्थ दिट्ठन्तो" ॥१५॥[ ] जिणदत्तेणं भणियं गहियं हरिसेण बुद्धदासेण । अमयं व खीरसायरसमुत्थममराण नियरेण ॥१६।। पुरिसोत्तमो व्व लच्छीसहिओ खीरन्नवम्मि पासाए । चिट्ठइ सुहासिए तो सुहिओ सद्धिं सुभद्दाए ॥१७।। सा वि सुभद्दा विहिणा गिहम्मि जिणबिंबपूयणं काउं । गच्छइ जिणिन्दभवणे कयसिंगारा वि अवियारा ॥१८॥ सुगुरूण पायवन्दणपुरस्सरं समयसारमणुदियहं । निसुणंती सद्धाए गच्छइ संवेगरसपसरं ॥१९॥ 20 25 Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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