Book Title: Jayantiprakaranvrutti
Author(s): Malayprabhsuri, Chandanbalashreeji
Publisher: Shrutgyan Prasarak Sabha
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जयन्तीप्रकरणवृत्तिः । गाथा ४।५।६
तह गेहव्वावारं करुणारसेक्कमाणसा निच्चं । जइणाए कुणइ सव्वं जणणीए सुद्धधम्मस्स ॥२०॥ अपुव्वनाणगहणे समुज्जया अज्जवेण संजुत्ता । मुत्ताहलं व अंतो बाहिं परिसुद्धपरिणामा ॥२१॥ सज्झायज्झाणपरा गहीरमहुमहुरउचियवाणीए । पियवयणदाणविणयावज्जियसज्जणसयणवग्गा ॥२२॥ इच्चाइ सुगुणसंचयसुमेरुगिरिरायचूलिया तीए । लोए पसंसणिज्जा सुनिच्चला सीलसंपत्ती ॥२३।। अह ससुरकुले सासुनणंदपमुहाई अंगुवंगाई । डज्झन्ति तीए ईसानलेण पसरन्तजालेण ॥२४॥ ताओ संतत्ताओ पक्खरिअवाएक्ककरुणरसियाओ । तीए महासईए बिन्ति असन्तं पि तो दोसं ॥२५॥ भणइ य भइणीसहिया जणणी पुत्तं जणम्मि तुह भज्जा । वन्निज्जए सुभद्दा नामेणं न उण कज्जेणं ॥२६॥ जेणेसा जिणगेहे चिट्ठइ गन्तूण साहुपासम्मि । चिरकालं निस्संका निरंकुसा कह सई होइ ? ॥२७॥ तो भणइ बुद्धदासो कह दोसो माइ जिणहरे होइ ? । गुरुबंभयारिपासे किं दुद्धे हुंति पूयरया ? ॥२८॥ सोलसमकला ससिणो वहइ कलंकं कयावि किं माइ ! । किं माइ गुणमईए एयाए जणणि ! दोसो वि ? ॥२९॥ तो ईमीए उवरिं नो संका माइ का वि कायव्वा । कि अमियसारणीए विसवल्ली होइ कइया वि? ॥३०॥ एवं च सुभद्दाए ससिप्पहाए गुणाण संसाए । विहडंति ताण सुवयणचक्काई सुटुंघडियाई ॥३१॥ सासूपमुहा ताओ तीए छिद्दाणि तयणु मग्गंति । उच्छलियमच्छराओ विलक्खहिययाओ अणुदियहं ॥३२॥
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