Book Title: Jaipur Khaniya Tattvacharcha Aur Uski Samksha Part 1 Author(s): Vanshidhar Vyakaranacharya, Darbarilal Kothiya Publisher: Lakshmibai Parmarthik Fund Bina MP View full book textPage 8
________________ अपनी बात तत्त्वकी पृष्ठभूमि सन् १९६३ के प्रारंभ में श्री पं० जगन्मोहनलालजी शास्त्री कटनी से बात-चीत के प्रसंग मृझे यह जानकारी मिली कि पं० फूलचंद्रजी सिद्धांतशास्त्री, वाराणसी "जैन तत्व मीमांसा" पुस्तकको सशोधनके साथ पुनः प्रकाशित करना चाहते हैं। मैंने इरा जानकारीके आधार पर पं० फूलचंद्रजी को इस आशयका पत्र लिखा कि यदि आप "जैन तत्त्व - मीमांसा" पुस्तकको संशोधन के साथ पुनः प्रकाशित कर रहे हों तो मेरी हार्दिक भावना कि उसके प्रकवाले पूर्व आप और मैं कुछ तत्त्व-विमर्श कर लें। पं० फूलचंद्रजीका इस संबंध में जो उत्तर आया था उसका आशय यह था कि यदि में सामूहिक तस्वचर्चाका आयोजन करने में उनका सहयोगी बनूँ तो उत्तम होगा । यद्यपि मैं सामूहिक तत्त्वचर्चाका पहले से विरोधी ही था, क्योंकि मेरी धारणा थी कि इस आयोजन से कुछ लाभ नहीं होगा । परन्तु पं० फूलचंद्रजीने जब यह विश्वास दिलाया कि उनकी हार्दिक भावना तत्वनिर्णय करने की है तो मैंने उन्हें लिख दिया कि आप जब बोना पधारें तब आपके इस प्रस्तावपर विमर्श कर लिया जायेगा । यतः पं० फुलचंद्रजीको उस समय बीना आनेका शीघ्र योग मिल गया था, अतः उनके आने पर दोनोंने विमर्श करके एक संयुक्त वक्तव्य तैयार कर अल्प कालमें ही समाचारपत्रों में प्रकाशनार्थ भेज दिया था । उस समय फूलचंद्रजीने मुझसे यह भी पूछा था कि तत्वचर्चा के लिए कौन-सा स्थान उपयुक्त होगा ? इस पर मेरा उत्तर यह था कि जो स्थान आपको अधिक अनुकूल हो उसे दूसरा पक्ष निर्विवाद स्वोकार कर लेगा । परन्तु जयपुर-खानियां में श्री १०८ आचार्य शिवसागरजी महाराजके समक्ष एकाएक यह निर्णय कर लिया गया कि तत्त्वचर्चा खानियां में हो और उसका प्रारंभ २० अक्टूबर सन् १९६३ से किया जाये | इतना हो नहीं, यह निर्णय होने हो तत्त्वचर्चाके आयोजन में संभाव्य व्ययक बनका भार अपने ऊपर लेकर श्री ० सेठ होरालालजी पाटनी, निवाई वालोंने ब्र लाडमलजीके साथ मिलकर उभयपक्ष के ३४ विद्वानोंको २० अक्टूबर के संकेतपूर्वक तत्त्वचर्चाका आमंत्रण-पत्र तत्काल प्रेषित कर दिया था । तथा तत्त्वचर्चा में रुचि रखने वाले विद्वानोंने अपनी स्वीकृति भी ० लाडमलजी के पास तत्काल भेज दी थी। किन्तु पं० फूलचन्द्रजीने स्वीकृति नहीं भेजी थी। फलतः उनको स्वीकृति प्राप्त करने के लिए व० लाइमलजीको उनके साथ लम्बा पत्राचार करना पड़ा तथा उनको पं० फुलचन्द्रजीकी स्वीकृतिका जब आश्वासन मिला तो समय कम रह जाने के कारण उन्होंने विद्वानोंसे तार द्वारा यह अनुरोध किया कि वे २० अक्टूबर के पूर्व खानिय पहुँचने की कृपा करें। ब्र० जी का तार मिलने पर बहुत से विद्वान तत्काल खानियो यात्रा पर घर से निकल पड़े। शेष कतिपय विद्वान् खानियाँ यात्रा पर चलने वाले ही थे कि उन्हें ब० लाडमलजीका दूसरा तार मिला, जिसका आशय यह था कि पं० फूलचन्द्र जी नहीं आ रहे हैं, इसलिये चर्चा स्थगित कर दी गई है । यह तार मिलने पर उन विद्वानोंने, ( जिनमें मैं भी सम्मिलित था ) अपनी यात्रा स्थगित कर दी थी। परन्तु २० अक्टूबर को पं० फूलचन्द्रजी जब एकाएक खानियाँ पहुँचे तो व्र० लाडमलजीने तीसरी बार तार द्वारा विद्वानों को सूचित किया कि पं० फूलचन्द्रजी खानियाँ पहुँच चुके हैं, अतः शीघ्र खानिय पहुँचें । फलतः पं० पन्नालालजी साहित्याचार्य, सागर और मैं २१ अक्टूबरको चलकर २२ अक्टूबर के प्रातः खानियाँPage Navigation
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