Book Title: Jaipur Khaniya Tattvacharcha Aur Uski Samksha Part 1
Author(s): Vanshidhar Vyakaranacharya, Darbarilal Kothiya
Publisher: Lakshmibai Parmarthik Fund Bina MP

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Page 6
________________ जयपुर (खानिया) तत्त्वचर्चा और उसकी समीक्षा नामे जमा २०९३७०७०पिछली बाकी सिलक रोकड़में दिनांक ६५९८-५६ ग्रन्थस्वाते नामे .७-१०-८१ को १२-११-७७ को २०९३७ = ७० पै० १. 'जैन शासनमें निश्चय और व्य२०० - ०० थी प्रो० हुकमचन्द जी जैन छतरपुर बहार', २. 'जैन तत्व-मीमांसाकी से आया दि. ३-६-७८ को २००.०० मीमांसा' (भाग १), ३. 'जैन दर्शनमें कार्य-करणभाव और कारक-व्यवस्था १००० ००० श्री भा. दि.जैन विद्वत्पषिदरसे प्राप्त प्रन्थों में लगी पूंजी ६५९८ - ५६ "जन शासनमें निश्चय और व्यवहार'' १४.७ % ६२ फूटकर खर्च १२-११-७७ से २७-१०ग्रन्थपर पुरस्कार-निधि, दिनांक ८१ तक १४-६-८० को १०००=०० ५३३१ = ६० कागज खरीद स्मानिया तत्व-चर्चा ४२४५ = ४१ ज्याज दि. १२-११-७७ से २७-१० और उसकी समीक्षाके मुद्रण के लिये ८१ तकका ४२४५ - ४१ १०७९ - ६५ ग्रन्थ-बिक्री २७-१०-६१ तककी ८४० - १५ थी पं० दरबारीलालजी कोठिया वाराणसोके पास जमा बाइडिंगके ५३०० = 00 श्रीमती गुणमाला जैन क्लर्क स्टेट कपड़ा खरीदके लिए २७-१०-८१ को बैंक बीनाका देना दि० २.१-१०-८१ को ५३०० - ०० १९५० आचार्य महावीरकीति "संस्था आवागढ़से लेना २७-१०-८१ को ३२७६२ = ७६ पैसे १९५० १६७९५ = ३५फर्म पं० बंशीधर सनसकुमार बीनासे लेना ता. २७-१०-८१ को १६७९५ - ३५ ३०२९ - ९८ सिलक बाकी रोकड़म २७-१०-८१ ३०२९ - ९८ ३२७६२७६ 'जैन शासनमें निश्चय और व्यवहार' ग्रन्थको केवल ५०० प्रतियाँ मद्रित कराई गई थी। इसमें यह हेतु बताया गया था कि समाजमें साहित्यिक रुचिका अभाव होने और स्वाध्यायी व्यक्तियों के लिए उपयोगी होनेसे बिक्रीकी संभावना कम है। यही बात 'स्वानिया तत्वचर्चा और उसकी समीक्षा' प्रन्थके मुद्रणके विषय में भी है। अत: इसको भी मात्र ५०० प्रतियाँ छपवाई गई है। अन्यका मुद्रण सुन्दर और बाइडिंग टिकाऊ होना चाहिए, इस बातका ध्यान 'जन शासनमें निश्चय और व्यवहार' ग्रन्धके प्रकाशनको भौति प्रकृत ग्रन्थ 'जयपुर खानिया) तत्त्वचर्ना और उसकी समीक्षा के प्रकाशनमें भी रखा गया है। अन्य बड़ा होनेसे इसकी पूरी दाइडिंग अढ़िया कपड़ेकी कराई गई है। इस ग्रन्थ के प्रकाशित हो जानेपर अब फण्डके स्टाकमें इस सहित 'जन शासनमें निदवय और व्ययहार', 'जैन तत्व-मीमांसाकी मीमांसा' (भाग १) और 'जैन दर्शनमें कार्य-कारणभाष और कारकाव्यवस्था' ये

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