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श्र०१, अ०८, उ०४ सू०२०६ . २५
आचारांग-सूची २०३ समनोज्ञ को आहारादि देने का विधान सूत्र संख्या १०
तृतीय अंग चेष्टा भाषित उद्देशक २०४ क. दीक्षा (मध्यम वय में) समता
. श्रीकैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर अपरिग्रही
श्रीमहावीर जैन आराधना केन्द्र अग्रंथ (निग्रंथ)
कोबा (गांधीनगर) पि 30000 एक चर्या २०५ क आहार से शरीरोपचय (परीषह से शरीर क्षय)
इन्द्रियों की क्षीणता
दया (श्रमण) ख भिक्षु के लक्षण
शीत से कम्पित भिक्षुओंको देखकर गृहस्थ की आशंका ख भिक्षु का यथार्थ कथन, अग्नि से तपने का निषेध सूत्र संख्या ४
चतुर्थ वेहानसादि मरण उद्देशक २०८ क तीन वस्त्र और एक पात्रधारी श्रमण का आचार
चौथा वस्त्र लेने का संकल्प न करे तीन वस्त्र न हो तो निर्दोष वस्त्र ले जैसे वस्त्र मिले वैसे ले वस्त्रों को धोए अथवा रंगे नहीं धोए हुए या रंगे हुवे वस्त्र पहने नहीं
अन्य ग्राम जाते समय वस्त्र पिछावे नहीं २०६ क ग्रीष्म ऋतु आने पर जीर्णवस्त्र डालदे (परठदे)
आवश्यकता हो तो अल्प वस्त्र रखे
२०७ क
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