Book Title: Jain Vidya 14 15
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 32
________________ जैनविद्या 14-15 आचार्यों का कहीं-कहीं नामोल्लेख करके दिया है तो कहीं 'उक्तंच' या 'वुत्तं च ' या ' भणियं च (भणितं च ) ' लिखकर उल्लेख किया है । 25 इस तरह पंचस्तूपान्वयी भट्टारक आचार्य वीरसेन स्वामी की आचार्य पुष्पदन्त और भूतबलिकृत 'षट्खण्डागम' पर 'धवला टीका' जो अपने आप में एक स्वतन्त्र, मौलिक ग्रन्थस्वरूप है, जैन वाङ्मय की ही नहीं अपितु भारतीय वाङ्मय की एक अनूठी और अद्भुत मौलिक कृति है जिसमें आचार्य वीरसेन के अगाध पाण्डित्य, विलक्षण प्रतिभा एवं विस्तृत बहुश्रुतज्ञता का आभास मिलता है। अन्त में आचार्य वीरसेनस्वामी को श्रद्धा-सुमन समर्पित करते हुए अपना लेख समाप्त करता हूँ । श्रुति कुटीर, 68, विश्वास नगर शाहदरा, दिल्ली- 110032

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