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जैनविद्या 14-15
__राशियों के वाक्यरूप कथन, ज्ञप्ति एवं उनके बीच स्थापित सम्बन्ध, उनके स्वरूपादि की चर्चारूप व्याख्यान एवं उपाख्यान श्री वीरसेनाचार्य की एक अद्भुत प्रतिभासम्पन्न उपलब्धि है जो शताब्दियों तक पठन-पाठन एवं शोध तथा निर्णयों की भूमिकाएं अदा करती रहेंगी। किसी भी राशि, जैसे केवलज्ञान राशि, की परिभाषा, उसकी तद्रूप स्थापना और उसका ज्ञप्तियों में उपयोग जो अबाधित हो, न्याय-संगत हो, अखण्डित हो, मिथ्याभास से रहित हो, स्वबाधित न हो, परस्पर पूर्वापर विरोध से रहित हो - अपने आप में एक अतुलनीय प्रतिभा का घोतक है। __ आधुनिक विज्ञान में सापेक्षता का सिद्धान्त (Theory of relativity), परमाणु-शक्ति-पुंज का सिद्धान्त (Theory of quanta) अप्रतिम ऊंचाइयों और गहराइयों तक पहुंच चुके हैं, जो बीसवीं सदी की देन हैं। इसी प्रकार आज की बीसवीं सदी की अद्भुत देन राशि-सिद्धान्त (Theory of sets) उतनी ही ऊंचाइयों को प्राप्त कर चुकी है। इसके प्रणेता जार्ज केण्टर (1845-1918) विश्वविख्यात हुए हैं जिनके द्वारा परिभाषित राशि को स्वबाधित करारकर बुरेली फोर्ट एवं बरट्रेण्ड रसेल (नोबेल पुरस्कार सम्मानित एवं लोक शान्ति प्रतिष्ठान स्थापक) ने कैण्टर के राशि-सिद्धान्त को एक बार पूर्णरूप से धराशायी कर दिया था। किन्तु आज वही राशि-सिद्धान्त प्रत्येक शाला एवं विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में सर्वप्रथम स्थान पाये हुए है।
ऐसा भी क्या रहस्य है इस राशि-सिद्धान्त में जो विगत एक शती में कला-विज्ञान के प्रत्येक क्षेत्र में अपनी अनिवार्यता सिद्ध कर चुका है। व्यक्तिगत चर्चा सरल है, पर उसके समूहों की चर्चा उतनी ही गम्भीर है। व्यक्ति विशेष के गुणों का व्याख्यान सरल है किन्तु अनेक व्यक्तियों के बीच जो सम्बन्ध स्थापित होते हैं उनके संख्येय, असंख्येय एवं अनन्त परिप्रेक्ष्य उद्घाटित करना उतना ही कठिन है, और सर्वाधिक कठिन है उनके इन सम्बन्धों को निर्णीत कर उन्हें सत्यरूप प्रमाणित करना - आगम से अथवा प्रयोगों से जो प्रत्यक्ष एवं परोक्ष अनुमानों पर आधारित हों।
स्पष्ट है कि न्याय, छन्द, व्याकरण, आयुर्वेद, गणित, ज्योतिष आदि विद्याओं में सर्वगुणसम्पन्न श्री वीरसेनाचार्य की सुभाग्य रेखाओं में धवलाकार और जयधवलाकार होने का श्रेय था। उन्होंने राशि-सिद्धान्त के प्रायः सभी कर्म-परिप्रेक्ष्यों को समुद्घाटित किया जो शब्दों
और वाक्यों की प्राकृत भाषा एवं कनाड़ी लिपि में निबद्ध हुआ। किन्तु अभी भी न्यायपूर्ण अभिप्राययुक्त कर्म-सिद्धान्त के अनेक परिप्रेक्ष्य गोम्मटसारादि की अर्थ-संदृष्टि टीकाओं में छिपे हुए गर्भित हैं जिन पर अगली पीढ़ी को कठोरतम परिश्रम कर उद्घाटित करना शेष है। ___ जैसे ब्राह्मी आदि लिपि भाषा को संकेतमय बनाकर ध्वनियों में नये परिप्रेक्ष्य उत्पन्न करती है, उसी प्रकार सुन्दरी आदि लिपि गणित को संकेतमय बनाकर अदृश्य एवं अनसुनी काल्पनिकतम ध्वनियों में नये परिप्रेक्ष्य उत्पन्न करती है। नये परिप्रेक्ष्य मिलते ही हम अज्ञान की परतंत्रता से ज्ञान के सुन्दरतम स्वातंत्र्य में प्रवेश करते हैं। एक बाढ़-सी आती है उन परिप्रेक्ष्यों की जिनके आलम्बन से हम उन परिणामों, पारिणामिक भावों की धाराओं में तन्मय हो जाते हैं जो मिथ्यात्व के तिमिर को छिन्न-भिन्न करती अखण्ड निर्मलता में प्रवेश करती, करा देती, कराती चली जाती हैं। आज का न्याय भी सुन्दरी जैसी लिपि के संकेतों में निबद्ध हुआ और