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जैनविद्या 14-15
नवम्बर 1993 - अप्रेल 1994
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श्री वीरसेनाचार्य
( आधुनिक न्यायशास्त्र के संदर्भ में )
- प्रोफेसर एल.सी. जैन
- कु. प्रभा जैन
नवीं सदी में हुए विश्वविख्यात 'धवला' एवं 'जयधवला' टीकाओं के रचनाकार श्री वीरसेनाचार्य ने दिगम्बर जैन आगम ग्रंथों, षट्खण्डागम एवं कषाय प्राभृत की गूढ़तम सामग्री को अभूतपूर्व रूप में प्रस्तुत कर अप्रतिम लोक-कल्याण किया। उनकी उक्त टीकाओं में अंक - गणितीय संदृष्टियां प्राप्त हैं, गणितीय न्याय शब्दों द्वारा अभिव्यक्त है । परन्तु शेष अर्थसंदृष्टिमय कार्य श्री नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती कृत (लगभग 10वीं सदी) गोम्मटसार, लब्धिसार, क्षपणसार की जीवतत्त्व प्रदीपिका, संस्कृत टीका एवं सम्यक्ज्ञान चंद्रिका टीका के अर्थसंदृष्टि अधिकारों में उपलब्ध है ।
वस्तुत: दिगम्बर जैन परम्परा के इन आगम ग्रंथों में कर्म सिद्धान्त को गणित द्वारा साधा गया है, और कर्म सिद्धान्त के गहनतम परिप्रेक्ष्यों को उद्घाटित करने हेतु न केवल गणितीय न्याय अपितु गणितीय संदृष्टियों का सुन्दरी लिपि की सहायता से गम्भीरतम शोध कार्य किया गया है जिसमें विश्लेषण, संश्लेषण, राशि - सिद्धान्त एवं परमाणु - सिद्धान्त आदि का प्रयोग किया गया है।