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जैनविद्या 14-15
गुणभद्र के प्रधान शिष्य लोकसेन ने अमोघवर्ष के जैन सेनापति बंकेयरस के पुत्र लोकादित्य के प्रश्रय में उसकी राजधानी बंकापुर को अपना केन्द्र बना लिया प्रतीत होता है, जहां उसने 898 ई. में गुरु द्वारा रचित 'उत्तरपुराण' का ग्रन्थविमोचन समारोह किया था। __ इस प्रकार अनेक न जाने कितने विद्वानों, जिनका नाम ऊपर लिया जा चुका है अथवा नहीं भी लिया गया, का वाटनगर के इस ज्ञानकेन्द्र (विद्यापीठ) से प्रत्यक्ष या परोक्ष सम्बन्ध रहा, कहा नहीं जा सकता। वह अपनी उपलब्धियों एवं सक्षमताओं के कारण निश्चय ही तत्कालीन विद्वानों का आकर्षण केन्द्र भी रहा होगा और प्रेरणा-स्रोत भी। राष्ट्रकूट युग के इस सर्वमहान् ज्ञानकेन्द्र एवं विद्यापीठ की स्मृति भी आज लुप्त हो गई है, किन्तु इसमें सन्देह नहीं है कि अपने समय में यह अपने समकालीन नालन्दा और विक्रमशिला के सुप्रसिद्ध बौद्ध विद्यापीठों को समर्थ चुनौती देता होगा। भारत के प्राचीन विश्वविद्यालयों में तक्षशिला, विक्रमशिला और नालन्दा की ही भांति यह वाटग्राम विश्वविद्यालय भी परिगणनीय है।
सहायक निबन्धक (आयुर्वेद) भारतीय चिकित्सा केन्द्रीय परिषद् म/ई स्वामी रामतीर्थ नगर नई दिल्ली -110055