Book Title: Jain Vidya 14 15
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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जैनविद्या 14-15
65
1. स्त्रीवेद 2. पुरुषवेद
5. वेदमार्गणा
मिथ्यादृष्टि से अनिवृत्तिकरण गुणस्थान। (1-9) मिथ्यादृष्टि से अनिवृत्तिकरण गुणस्थान। (1-9) मिथ्यादृष्टि से अनिवृत्तिकरण गुणस्थान। (1-9)
3. नपुंसकवेद
1. क्रोधकषाय
2. मानकषाय 6. कषायमार्गणा 3. मायाकषाय
4. लोभकषाय
मिथ्यादृष्टि से अनिवृत्तिकरण गुणस्थान। (1-9) मिथ्यादृष्टि से अनिवृत्तिकरण गुणस्थान। (1-9) मिथ्यादृष्टि से अनिवृत्तिकरण गुणस्थान। (1-9) मिथ्यादृष्टि से सूक्ष्मसांपराय शुद्धिसंयत गुणस्थान। (1-10)
1. कृष्णलेश्या 2. नीललेश्या 3. कापोतलेश्या 4. पीतलेश्या 5. पद्मलेश्या 6. शुक्ललेश्या
मिथ्यादृष्टि से असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान। (1-4) मिथ्यादृष्टि से असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान। (1-4) मिथ्यादृष्टि से असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान। (1-4) मिथ्यादृष्टि से अप्रमत्तसंयत गुणस्थान। (1-7) मिथ्यादृष्टि से अप्रमत्तसंयत गुणस्थान। (1-7) मिथ्यादृष्टि से अप्रमत्तसंयत गुणस्थान। (1-13)
7. लेश्यामार्गणा
1. मतिज्ञान
2. श्रुतज्ञान
8. ज्ञानमार्गणा
3. अवधिज्ञान,
असंयतसम्यग्दृष्टि से क्षीणकषाय-वीतराग-छद्मस्थ गुणस्थान। (4-12) असंयतसम्यग्दृष्टि से क्षीणकषाय-वीतराग-छद्मस्थ गुणस्थान। (4-12) असंयतसम्यग्दृष्टि से क्षीणकषाय-वीतराग-छद्मस्थ गुणस्थान। (4-12) अप्रमतसंयत से क्षीणकषायवीतराग-छद्मस्थ-गुणस्थान। (7-12) सयोगिकेवली और अयोगिकेवली गुणस्थान। (13-14)
4. मनःपर्ययज्ञान
5. केवलज्ञान
1. चक्षुदर्शन
9. दर्शनमार्गणा
2. अचक्षुदर्शन
मिथ्यादृष्टि से क्षीणकषायवीतराग-छद्मस्थ गुणस्थान। (1-12) मिथ्यादृष्टि से क्षीणकषायवीतराग-छद्मस्थ गुणस्थान। (1-12) असंयतसम्यग्दृष्टि से क्षीणकषायवीतराग-छद्मस्थ गुणस्थान। (4-12) सयोगिकेवली और अयोगिकेवली गुणस्थान। (13-14)
3. अवधिदर्शन
4. केवलदर्शन

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