Book Title: Jain Vidya 14 15
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 73
________________ 66 शुद्धिसंयम 10. संयममार्गणा 3. परिहार शुद्धिसंयम 4. सूक्ष्मसांपराय शुद्धिसंयम 5. यथाख्यातविहार शुद्धिसंयम 12. भव्यमार्गणा 1. सामायि शुद्धिसंयम 2. छेदोपस्थापना 2. वेदकसम्यक्त्व 11. सम्यक्त्वमार्गणा 3. उपशमसम्यक्त्व 13. संज्ञीमार्गणा 14. आहारमार्गणा 1. क्षायिकसम्यक्त्व 1. भव्य 2. अभव्य 1. संज्ञी 4. सासादनसम्यक्त्व 5. सम्यग्मिथ्यासम्यक्त्व सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थान। (3) 2. असंज्ञी 1. आहारक जैनविद्या 14-15 प्रमत्तसंयत से अनिवृत्तिकरण गुणस्थान । (6-9) प्रमत्तसंयत से अनिवृत्तिकरण गुणस्थान । (6-9) प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थान। (6-9) 2. अनाहारक सूक्ष्मसांपराय शुद्धिसंयत गुणस्थान। (10) उपशान्त-कषाय- वीतराग - छद्मस्थ, क्षीणकषाय- वीतराग-छद्मस्थ, सयोगिकेवलि और अयोगिकेवली गुणस्थान। (11-14) असंयतसम्यग्दृष्टि से अयोगिकेवलि गुणस्थान । (4-14) असंयतसम्यग्दृष्टि से अप्रमत्तसंयत गुणस्थान । (4-7) असंयतसम्यग्दृष्टि से उपशान्त कषाय- वीतराग-छद्मस्थ गुणस्थान। (4-11) सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थान। (2) मिथ्यादृष्टि से अयोगिकेवली गुणस्थान। (1-14) मिथ्यादृष्टि गुणस्थान । (1) मिथ्यादृष्टि से क्षीणकषाय वीतराग - छद्मस्थ गुणस्थान। (1-12) मिथ्यादृष्टि गुणस्थान । (1) मिथ्यादृष्टि से सयोगिकेवली गुणस्थान । (1-13) सिद्धों के अतिरिक्त - मिथ्यादृष्टि, सासादन सम्यग्दृष्टि, अविरतसम्यग्दृष्टि, सयोगिकेवली और अयोगिकेवली गुणस्थान । (1-4, 13-14)

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