Book Title: Jain Vidya 14 15
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 44
________________ जैनविद्या 14-15 37 है वह ऐसा स्वयंसिद्ध है, गुणधर्म संबंधी, जिसमें परिसीमा का उल्लंघन हो गया है। उसमें ही अनन्त स्वयंसिद्धों का समावेश हो गया है, न कि वह केवल एक ही स्वयंसिद्ध (axiom) है। इसके प्रकाश में हम जब चौदह धाराओं में आनेवाले प्रथम पद और अन्तिम पद का निर्धारण करते हैं तो हमें उन सभी प्रक्रियाओं को न्याय की कसौटी पर रखना होता है, जिसमें निम्नलिखित पर विचार करना आवश्यक हो जाता है - 1. क्या अनन्त राशि से बड़ी अनन्त राशि का अस्तित्व है और क्या उसे सिद्ध किया जा सकता है, तथा क्या उसे निर्मित किया जा सकता है? 2. किसी भी गणात्मक (cardinal) राशि को क्या सुक्रमबद्ध किया जा सकता है? राशि विशेषतः जब अनन्तात्मक हो। 3. क्या गणना संक्रिया से असंख्येय एवं अनन्त राशि उत्पन्न की जा सकती है? धवलादि में शलाका संगणन की कुछ विशेष प्रक्रियाएं बतलाई गयी हैं, उनका न्याय शास्त्र में क्या महत्त्व है ? 4. न्यायशास्त्र में अनन्त राशि का अर्धादि किस प्रकार प्रमाणित किया जा सकता है? यह धाराओं के दिग्दर्शन के लिए अनिवार्य है ? 5. जैन न्यायशास्त्र की अनेक जटिल विधियां आधुनिक न्यायशास्त्र की विधियों से कहां तक तुलना की वस्तुएं हैं ? अब हम देखें कि श्री वीरसेनाचार्य द्वारा निबद्ध धवला टीका में गणितीय न्याय राशियों के दत्त प्रमाणों को कहाँ तक सुव्यवस्थित करता है। उनके अनुसार, विद्वान पुरुष सम्यग्ज्ञान को प्रमाण कहते हैं, नामादिक के द्वारा वस्तु में भेद करने के उपाय को न्यास या निक्षेप कहते हैं और ज्ञाता के अभिप्राय को नय कहते हैं। इस प्रकार युक्ति से पदार्थ का ग्रहण अथवा निर्णय करना चाहिए' (धवला, पु. 3, पृ. 18)। कथन __ 1.शाश्वतानन्त धर्मादि द्रव्यों में रहता है, क्योंकि धर्मादिद्रव्य शाश्वतिक होने से उनका कभी भी विनाश नहीं होता है। जो गणनानन्त है, वह बहुवर्णनीय और सुगम है। एक परमाणु को अप्रदेशिकानन्त कहते हैं। शंका - द्रव्यत्व के प्रति अविशिष्ट ऐसे शाश्वतानन्त और अप्रदेशानन्त का नोकर्म द्रव्यानन्त में अंतर्भाव क्यों नहीं हो जाता है? समाधान - नहीं, क्योंकि, शाश्वतानन्त का नोकर्म द्रव्यानन्त में तो अन्तर्भाव होता नहीं है, क्योंकि इन दोनों में परस्पर भेद है। स्पष्टीकरण - अन्त विनाश को कहते हैं, जिसका अन्त नहीं होता है उसे अनन्त कहते हैं। द्रव्य शाश्वतानन्त है और नोकर्म द्रव्यगत अनन्तता की अपेक्षा और कटकादि के वस्तुतः अन्त के अभाव की अपेक्षा अनन्त है, इसलिये इन दोनों में एकत्व नहीं हो सकता है। एक प्रदेशी परमाणु

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