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धर्माराधना और सल्लेखनावत की पालना से दिव्यरूप पा लेता है। वहाँ पर अद्भुत और अतिशयपूर्ण दिव्य मूर्तियाँ और मन्दिर मुमुक्षु के हृदय पर ज्ञान-ध्यान की शांतिपूर्ण मुद्रा अङ्कित करने में कार्यकारी होते हैं।
जैनसिद्धान्त साक्षात धर्मविज्ञान है. उसमें अंधेरे में निशाना लगाने का उद्योग कहीं नहीं है ! वह साक्षात् सर्वज्ञसर्वदर्शी तीर्थङ्कर की देन है। इसलिये उसमें पद-पद पर धर्म का वैज्ञानिक निरूपण हुआ मिलता है। हर कोई जानता है कि जिसने किसी मनुष्य को देखा नहीं है, वह उस को पहचान नहीं सकता! मोक्षमार्ग के पर्यटक का ध्येय परमात्मस्वरूप प्राप्त करना होता है । तीर्थङ्कर भगवान् उस परमात्म स्वरूप के प्रत्यक्ष आदर्श जीवन्मुक्त परमात्मा होते हैं। अतएव उनके दर्शन करना एक मुमुक्षु के लिये उपादेय है, उनके दर्शन उसे परमात्म-दर्शन कराने में कारणभत होते हैं। इस काल में उनके प्रत्यक्ष दर्शन सुलभ नहीं हैं । इसलिये ही उनकी तदाकार स्थापना करके मूर्तियों द्वारा उनके दर्शन किये जाते हैं तीर्थस्थानों में उनकी उन ध्यान मई शाँतमुद्रा को धारण किये हुये मूर्तियाँ भक्तजन के हृदय में सुख और शांति की पुनीत धारा बहा देती हैं। भक्तहृदय उन मूर्तियों के सन्मुख पहुँचते ही अपने आराध्य देव का साक्षात् अनुभव करता है और गुणानुवाद गा-गाकर अलभ्य आत्मतुष्टि पाता है । पाठशाला में बच्चे भूगोल पढ़ते हैं।
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