Book Title: Jain Tirth aur Unki Yatra
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Digambar Jain Parishad Publishing House

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Page 12
________________ परमात्मा एक पुण्यक्षेत्र पर आ विराजमान होते हैं और वहीं से लोकोत्तर ध्यान की साधना से अघातिया कर्मों' का भी नाश करके अशरीरी परमात्मा हो जाते हैं। निर्वाणकाल के समय उनके ज्ञानपुञ्ज आत्मा का दिव्य प्रकाश लोक को आलोकित कर देता है और वह क्षेत्रज्ञान-किरण से संस्कारित हो जाता है। देवेन्द्र वहां आकर निर्वाण कल्याणक पूजा करता है और उस स्थान को अपने वजदण्ड से चिह्नित कर देता है १ । भक्तजन ऐसे पवित्र स्थानों पर चरण-चिन्ह स्थापित करके यक्त लिखित दिव्य घटनाओं की पुनीत स्मृति स्थायी बना देते हैं । मुमुक्षु उनकी वंदना करते हैं और उस आदर्श से शिक्षा ग्रहण करके अपना आत्मकल्याण करते हैं । यह है तीर्थो का उद्घाटन रहस्य । ___ किन्तु तीर्थङ्कर भगवान् के कल्याणक स्थानों के अतिरिक्त सामान्य केवली महापुरुषों के निर्वाणस्थान भी तीर्थवत् पूज्य हैं। वहां निरन्तर यात्रीगण आते जाते हैं। उस स्थान की विशेषता उन्हें वहां ले आती है। वह विशेषता एकमात्र आत्मसाधना के चमत्कार की द्योतक होती है। उस अतिशय क्षेत्र पर किसी पज्य साधु ने उपसर्ग सहन कर अपने आत्मबल का चमत्कार प्रगट किया होगा अथवा वह स्थान अगणित आराधकों की १-हरिवंशपुराण व उत्तरपुराण देखो। २–पार्श्वनाथचरित्र ( कलकत्ता ) पृ० ४२० । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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