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भ० महावीर और उनका समय
इसमें बतलाया गया है कि 'महावीरके निवांणसे ६०५ वर्ष ५ महीने बाद शक राजा हुआ, और शक राजासे ३६४ वर्ष ७ महीने बाद कल्की राजा हुमा ।' शक राजाके इस समयका समर्थन हरिवंशपुराण' नामके एक दूसरे प्राचीन ग्रंथसे भी होता है जो त्रिलोकसारसे प्राय: दो सौ वर्ष पहलेका बना हुआ है और जिसे श्रीजिनमेनाचार्यने शक सं० ७०५ में बनाकर समाप्न किया है। यथा :
वर्षाणां षदशतीं त्यक्त्वा पंचानां मासपंचकम् ।।
मुक्तिं गते महावीरे शकराजस्ततोऽभवत् ॥ ६०-५४६ !! इतना ही नहीं, बल्कि और भी प्राचीन ग्रन्थों में इस समयका उल्लेख पाया जाता है, जिसका एक उदाहरण 'तिलोयपण्णती' (त्रिलोकप्रजप्ति) का निम्न वाक्य है
णिव्वाणे वीरजिणे छन्वाससदेसु पंचवरिसेसु ।
पणमासेसु गदेसु संनादो सगणिो अहवाल ।। मक का यह समय ही शक संवतकी प्रवृत्तिका काल है, और इसका समर्थन एक पुरातन श्लोकमे भी होता है, जिसे श्वेताम्बराचार्य श्रीमेमतुगने अपनी 'विचारधेरिण' में निम्न प्रकारसे उद्धृत किया है.:-.
श्रीवीरनिवृतेः षड्भिः पंचोत्तरैः शनैः ।
शाकसंवत्सरस्यैषा प्रवृत्तिर्भरतेऽभवत् ॥ इसमें, स्थूलरूपमे वर्षों की ही गणना करते हुए, साफ़ लिखा है कि 'महावीरके निर्वाणमे ६०५ वर्ष बाद इम भारतवर्ष में शकसंवत्मरकी प्रवृनि हुई।'
श्रीवीरसेनाचार्य-प्रगीत 'धवल' नामके सिद्धान्त-भाष्यमे-जिमे इस निबंध में 'धवल सिद्धान्त' नाममे भी उल्लेखित किया गया है--इस विषयका और भी ज्यादा समर्थन होता है, क्योंकि इस ग्रंथमें महावीरके निर्वाणके बाद केवनियों तथा श्रुतघर-प्राचार्योंकी परम्पराका उल्लेख करते हुए और उसका
त्रिलोकप्रज्ञप्तिमें शककालका कुछ और भी उल्लेख पाया जाता है और इसीमे यहां पहवा' (अथवा) शब्दका प्रयोग किया गया है ।