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४२ जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश के उपालिसुत्त और सामगामसुत्तकी संयुक्त घटनाको लेकर, जो बहुत कुछ अप्राकृतिक द्वेषमूलक एवं कल्पित जान पड़ती है और महावीर भगवान्के साथ जिसका संबन्ध ठीक नहीं बैठता, यह प्रतिपादन किया है कि महावीरका निर्वाण बुद्ध के निर्वाणसे पहले हुअा है । परन्तु वस्तुस्थिति ऐसी मालूम नहीं होती । खुद बौद्धग्रन्थोंमें बुद्ध का निर्वाण अजातशत्रु (कूणिक) के राज्याभिषेकके आठवें वर्ष में बतलाया है; और दीघनिकायमें, तत्कालीन तीर्थकरोंकी मुलाकातके अवसर पर, अजातशत्रुके मंत्रीके मुखसे निगंठ नातपुत्त (महावीर) का जो परिचय दिलाया है उसमे महावीरका एक विशेषण “अद्धगतो वयो" ( अर्धगतवयाः) भी दिया है, जिसमे यह स्पष्ट जाना जाता है कि अजातशत्रुको दिये जाने वाले इस परिचयके समय महावीर अधेड उम्रके थे अर्थात् उनकी अवस्था ५० वर्पके लगभग थी। यह परिचय यदि अजातशत्रुके राज्यके प्रथम वर्षमें ही दिया गया हो, जिसकी अधिक संभावना है, तो कहना होगा कि महावीर अजातशत्रुके राज्यके २२ वें वर्ष तक जीवित रहे हैं। क्योंकि उनकी आयु प्रायः ७२ वर्ष की थी। और इमलिये महावीरका निर्वाण बुद्ध निर्वारणसे लगभग १४ वर्षके बाद हुआ है। 'भगवतीमूत्र' आदि श्वेताम्बर ग्रन्थोंसे भी ऐमा मालूम होता है कि महावीरनिर्वारगमे १६ वर्ष पहले गोगालक (मंखलिपुत्त गोगाल) का स्वर्गवास हुआ, गोशालकके स्वर्गवाससे कुछ वर्ष पूर्व( प्रायः ७ वर्ष पहले) अजातशत्रुका राज्यारोहण हुआ, उसके राज्यके आठवें वर्षमें बुद्ध का निर्वाण हुअा और बुद्ध के निर्वागणसे कोई १४-१५ वर्ष बाद अथवा अजातशत्रु के राज्यके २२ वें वर्षमें महावीरका निर्वाण हुआ । इस तरह बुद्ध का निर्वाण पहले और महावीरका निर्वागग उमके बाद पाया जाता है । इसके सिवाय, हेमचन्द्राचार्यने चंद्रगुप्नका गज्यारोहण. समय वीरनिर्वाणमे १५५ वर्ष बाद बतलाया है और 'दीपवंश' 'महावंश' नामके
* इन मूत्रोंके हिन्दी अनुवादके लिये देखो, राहुल सांकृत्यायन-कृत 'बुद्धचर्या पृष्ठ ४४५, ४८१ ।
देखो, जार्ल चाटियरका वह प्रसिद्ध लेख जिसका अनुवाद जैनसाहित्यसंशोधकके द्वितीय खंडके दूसरे अङ्कमें प्रकाशित दुपा है और जिसमें बौद्ध ग्रंथकी उस घटना पर खासी आपत्ति की गई है ।