Book Title: Jain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Shasan Sangh Calcutta

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Page 275
________________ १७ गंधस्ति महाभाष्यकी खोज कहा जाता है कि स्वामी समन्तभद्रने उमास्वातिके 'तत्त्वार्थ सूत्र' पर 'हस्त' नामका एक महाभाष्य भी लिखा है जिसकी श्लोक संख्या ८४ हज़ार है, और उक्त 'देवागम' स्तोत्र ही जिसका मंगलाचरण है। इस ग्रंथकी वसे तलाश हो रही है । बम्बई के सुप्रसिद्ध दानवीर सेठ माणिकचंद हीराचंदजी जे० पी० ने इसके दर्शनमात्र करा देनेवालेके लिये पांचसौ रुपये नकदका परितोषिक भी निकाला था, और मैने भी 'देवागम' पर मोहित होकर उस समय वह संकल्प किया था कि यदि यह ग्रंथ उपलब्ध हो जाय तो में इसके अध्ययन, मनन और प्रचार में अपना शेष जीवन व्यतीत करूंगापरन्तु आज तक किसी भी भण्डारस इस ग्रंथका कोई पता नही चला । एक बार अखबारों में ऐसी खबर उड़ी थी कि यह ग्रथ मास्ट्रिया देश के एक प्रसिद्ध - + 'गन्धहस्ति' एक बड़ा ही महत्वसूचक विशेषण है - गन्धेभ. गन्धगज, ate rafae भी इसीके पर्यायनाम है। जिस हाथीको गन्धको पाकर दूसरे हाथी नहीं ठहरते - भाग जाते अथवा निमंद और निस्तेज हो जाते हैं—उसे 'गस्ती' कहते हैं। इसी गुरण के कारण कुछ खास खास विद्वान् भी इस पदसे विभूषित रहे हैं। समन्तभद्रके सामने प्रतिवादी नहीं ठहरते थे यह बात कुछ विस्तार के साथ उनके परिचय में बतलाई जा चुकी है; इससे 'गंधहस्ती' अवश्य ही समन्तभद्रका विरुद अथवा विशेषरण रहा होगा और इससे उनके महाभाष्यको गंधहस्ति- महाभाष्य कहते होंगे । प्रथवा गंधहस्ति-तुल्य होने से ही वह गंधहस्तिमहाभाष्य कहलाता होगा और इससे यह समझना चाहिये कि वह सर्वोत्तम भाष्य है— दूसरे भाष्य उसके सामने फीक, श्रीहीन भोर निस्तेज है ।

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