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६८ . जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश उनसे आरोग्यज्ञान-लाभ (निरावरण अथवा मोहविहीन ज्ञानप्राप्ति), समाधि (धर्म्य-शुक्लध्यानरूप चारित्र), बोधि (सम्यग्दर्शन) और सिद्धि (स्वात्मोपलब्धि) की प्रार्थना की गई है । यह भक्तिपाठ प्रथम पद्यको छोड़ कर शेष सात पद्योंके रूपमें थोड़ेसे परिवर्तनों अथवा पाठ-भेदोंके साथ, श्वेताम्बर समाजमें भी प्रचलित हैं और इसे 'लोगस्स सूत्र' कहते हैं। इस सूत्रमें 'लोगस्स' नामके प्रथम पद्यका छांदसिक रूप शेष पद्योंसे भिन्न है-शेष छहों पद्य जब गाथारूपमें पाये जाते हैं तब यह अनुष्टुभ-जैसे छंदमें उपलब्ध होता है, और यह भेद ऐसे छोटे ग्रंथमें बहुत ही खटकता है-खामकर उस हालतमें जबकि दिगम्बर सम्प्रदायमें यह अपने गाथारूपमें ही पाया जाता है । यहाँ पाठभेदोंकी दृष्टिसे दोनों सम्प्रदायों के दो पद्योको तुलनाके रूपमें रक्खा जाता है :--
लोयस्सज्जोययरे धम्म-तित्थंकरे जिणे वंदे। अरहंते कित्तिम्से च वीसं चेव केवलिणे ॥ २॥ --दिगम्बरपाठ लोगस्स उज्जोअगरे धम्मतित्थयरे जिणं । अरहते कित्तइस्सं च वीमं पि केवली ।। १ ।। ----श्वेताम्बरपाठ कित्तिय वंदिय महिया एढ़े लोगोत्तमा जिग्गा सिद्धा।
आरोग्ग-णाण-लाह दितु समाहिं च मे बोहिं ।। ७ ।। ----दिगम्बरपाठ कित्तिय वंदिय महिया जे ए लोगस्स उत्तमा सिद्धा।
आरुग्ग-बोहिलाहं ममाहिवरमुनम दितु ।। ६।। ---श्वेताम्बरपाठ
इन दोनों नमूनोंपरमे पाठक इम स्तुतिकी साम्प्रदायिक स्थिति और मूलमे एकताका अच्छा अनुभव कर सकते हैं। हो सकता है कि यह स्तुतिपाठ और भी अधिक प्राचीन-सम्प्रदाय-भेदमे भी बहुत पहलेका हो और दोनों सम्प्र. दायोंने इसे थोड़े थोड़ेसे परिवर्तनके साथ अपनाया हो । अस्तु ।
कुन्दकुन्दके ये सब ग्रंथ प्रकाशित हो चुके है।
२३. मुलाचार और यटकेर-'मूलाचार' जैन साधुओंके प्राचार-विषयका एक बहुत ही महत्वपूर्ण एव प्रामाणिक ग्रंथ है। वर्तमानमे दिगम्बर-सम्प्रदायका
दोनों पद्योंका श्वेताम्बरपाठ पं० मुम्बनालजी-द्वाग सम्पादित 'पंचप्रतिक्रमण' ग्रन्थसे लिया गया है ।