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१५० जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश
साधनसामग्रीकी इस विरलताके कारण ऐतिहासिक तत्त्वोंके अनुसंधान और उनकी जाँचमें कभी कभी बड़ी ही दिक्कतें पेश आती है और कठिनाइयाँ मार्ग रोककर खड़ी हो जाती है। एक नामके कई कई विद्वान् हो गये है*; एक विद्वान् प्राचार्यके जन्म, दीक्षा, गुणप्रत्यय और देशप्रत्यादिके भेदसे कई कई नाम अथवा उपनाम भी हुए हैं और दूसरे विद्वानोंने उनका यथारुचि-चाहे जिस नामसे-अपने ग्रन्थोंमें उल्लेख किया है; एक नामके कई कई पर्यायनाम भी होते हैं और उन पर्यायनामों अथवा प्रांशिक पर्यायनामोंसे भी विद्वानोंतथा प्राचार्योका उल्लेख । मिलता है; कितने ही विभिन्न भाषाओंके अनुवादोंमे, कभी कभी मूलग्रंथ और ग्रथकारके नामोका भी अनुवाद कर दिया जाता है अथवा वे नाम अनुवादित रूपमे ही उन भापात्रोंके ग्रन्थोंमें उल्लेखित हैं; एक व्यक्ति के जो दूसरे नाम, उपनाम, पर्यायनाम अथवा अनुवादित नाम हों वे ही दूसरे व्यक्तियोंके मूल नाम भी हो सकते है और अमर होते रहे है; सम-सामयिक व्यक्तियोके
* जैसे, 'पद्मनन्दि' और 'प्रभाचन्द्र' आदि नाम के धारक बहतमे प्राचार्य हुए हैं। 'समन्तभद्र' नामके धारक भी कितने ही विद्वान् हो गये हैं, जिनमें कोई 'लघ' या 'चिक्क', कोई 'अभिनव', कोई गेम्सोप्पे', कोई भट्टारक' और कोई 'गृहस्थ' समन्तभद्र कहलाते थे। इन मबके ममयादिका कुछ परिचय रत्नकरण्डश्रावकाचार (ममीचीन धपंगास्त्र)की प्रस्तावना अथवा तद्विषयक निबन्धमें' ग्रन्थपर सन्देह' शीर्षकके नीचे, दिया गया है। स्वामी समन्तभद्र इन मबमेभिन्न थे और वे बहुत पहले हो गये है।
जैसे 'पद्मनन्दी' यह कुन्दकुन्दाचार्यका पहला दीक्षानाम था और बादको कोण्डकून्दाचार्य' यह उनका देशप्रत्यय-नाम हना है; क्योंकि वे 'कोण्डकुन्दपुरके निवासी थे। गुलियोंमे आपके एलाचार्य, वक्रग्रीव और गृध्रपिच्छाचार्य
म भी दिये हैं, जो ठीक होनेपर गुगादिप्रत्यको लिये हुए समझने चाहिये और इन नामोंके दूमरे प्राचार्य भी हुए हैं।
+ जैसे नागचन्द्रका कहीं 'नागचन्द्र' और कही भुजंगसुधाकर' इस पर्यायनामसे उल्लेख पाया जाता है । और प्रभाचन्द्रका 'प्रभेन्दु' यह प्रांशिक पर्याय नाम है,जिसका बहुत कुछ व्यवहार देखने में प्राता है ।