Book Title: Jain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Shasan Sangh Calcutta

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Page 238
________________ जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश नेमिदत्तके इस कथनमें सबसे पहले यह बात कुछ जीको नहीं लगती कि 'काँची' जैसी राजधानी में अथवा और भी बड़े-बड़े नगरों शहरों तथा दूसरी राजधानियों में भस्मक व्याधिको शांत करने योग्य भोजनका उस समय प्रभाव रहा हो और इस लिये समन्तभद्रको सुदूर दक्षिणसे सुदूर उत्तर तक हजारों मीलकी यात्रा करनी पड़ी हो। उस समय दक्षिण में ही बहुतसी ऐसी दानशालाएँ थी जिनमें साधुयोंको भरपेट भोजन मिलता था और अगणित ऐसे शिवालय थे जिनमें इसी प्रकार से शिवको भोग लगाया जाता था, और इसलिये जो घटना काशी (बनारस) में घटी वह वहां भी घट सकती थी । ऐसी हालत में, इन सब संस्था यथेष्ट लाभ न उठाकर, मुदूर उत्तरमे काशीतक भोजन के लिये भ्रमण करना कुछ समझ में नहीं आता । कथामें भी यथेष्ट भोजनके न मिलनेका कोई विशिष्ट कारण नहीं बतलाया गया - सामान्यरूपगे 'भस्मवाधिविनाशाहारहानित: ' ऐसा सूचित किया गया है, जो पर्याप्त नहीं है । दूसरे यह बात भी कुछ ग्रमंगनमी मालूम होती है कि ऐसे गुरु, स्निग्ध, मधुर और इनेष्मल २३४ , पद्यानुवाद है। पादपूर्ति ग्रादिके लिये उसमें कही कहीं थोड़े बहुत शब्द विशेषण अव्यय आदि प्रवश्य बढा दिये गये हैं। नेमिदनद्वारा लिखित कथाके ११ वें श्लोक में 'पुण्ड्रं न्दुनगरे' लिखा है, परन्तु गद्यकथामे० 'एण्ड्रन गरे' और 'वन्दक-लोकानां स्थाने' की जगह 'वन्दकानां वृहद्विहारे' पाठ दिया है। १२ वें 'पके 'वोग' की जगह 'वंदकलिंग' पाया जाता है। शायद 'वदक' बौद्धका पर्यायशब्द हो । 'कांच्या नग्नाटकोन्ह' आदि पोका पाठ ज्योंका त्यों है। उसमें 'पुण्ड्रोण्डु' की जगह 'पुण्ड़ोष्ट' 'टक्कविषये' की जगह 'ढक्कविषये श्रीर 'वेदिशे' की जगह 'वैदुपे' इस तरह नाममात्रका अन्तर दीख पड़ता है ।" ऐसी हालत में, नेमिदनकी कथाके इस सारांशको प्रभाचन्द्रकी कथाका भी माराश समझना चाहिये और इसपर होनेवाले विवेचनादिकां उस पर भी ययासंभव लगा लेना चाहिये । 'वन्दक' बौद्ध का पर्याय नाम है यह बात परमात्म प्रकाशकी ब्रह्मदेवकृतीका निम्न अंशसे भी प्रकट है "खवरणउ वंदउ सेवडउ" - अपरणको दिगम्बरोह, वंदको बौद्धोऽहं श्वेतपटादिलिंगधारकोऽमितिमूढात्मा एवं मन्यत इति । "

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