________________
स्वामी समंतभद्र
११ जो बड़े बड़े बुद्धिमानों द्वारा प्रपूज्य 8 है, वह अपने तेजसे सूर्यको किरणको जीतनेवाली सप्तभंगी विधिके द्वारा प्रदीप्त है, निर्मल प्रकाशको लिये हुए है और भाव-प्रभाव आदिके एकान्त पक्षरूपी हृदयांधकारको दूर करनेवाली है। साथ ही, अपने पाठकोंको यह आशीर्वाद देते हैं कि वह वाणी तुम्हारी विद्या ( केवलज्ञान ) और आनन्द ( अनंतमुख ) के उदयके लिये निरंतर कारणीभूत होवे और उसके प्रसादसे तुम्हारे संपूर्ण क्लेश नाशको प्राप्त हो जायँ । यहां 'विद्यानन्दोदयाय' पदसे एक दूसरा अर्थ भी निकलता है और उससे यह सूचित होता है कि ममंतभद्रकी वाणी विद्यानंदाचार्य के उदयका कारण हुई है और इसलिये उसके द्वारा उन्होंने अपने और उदयकी भी भावना की है।
अद्वैताद्याग्रहांग्रग्रहगहनविपन्निग्रह ऽलंध्यवीर्याः म्यात्कारामोघमंत्रप्रणयनविधयः शुद्धसद्ध यानधीराः । धन्यानामादधाना धृतिमधिवसतां मंडलं जैनमग्रयं । वाचः सामन्तभद्र यो विदधतु विविधां सिद्धिमुद्भूतमुद्राः ।। अपक्षकान्तादिप्रबलगरलोद्रे कदलिनी प्रवृद्धानेकान्तामृतरसनिपेकानवरतम् । प्रवृत्ता वागेषा सकलविकलादेशवशत: समन्ताद्भद्र वो दिशतु मुनिपस्यामलमतेः ।। अष्टमहनीके इन पद्योंमें भी श्रीविद्यानंद-जैसे महान् प्राचार्योन. जिन्होंने अष्टमहस्रीके अतिरिक्त प्राप्तपरीक्षा, प्रमाणपरीक्षा, पत्रपरीक्षा, सत्यशामनपरीक्षा, विद्यानन्दमहोदय और श्लोकवातिक आदि कितने ही महत्त्वपूर्ण ग्रंथोंकी रचना की है, निर्मलमति श्रीसमंतभद्र-मुनिराजकी वाणीका अनेक प्रकारमे गुणगान किया है और उसे अलंध्यवीर्य, स्यात्काररूप अमोघमंत्रका प्रणयन करनेवाली, शुद्ध -सद्धयानधीरा, उद्भूतमुद्रा, ( ऊँचे आनन्दको देनेवाली), एकान्तरूपी
* अथवा ममन्तभद्रकी भारती बड़े बड़े बुद्धिमानोंके द्वारा प्रपूजित है और उज्ज्वल गुणोंके ममूहमे उत्पन्न हुई मत्कीर्तिरूपी सम्पत्तिसे युक्त है ।
+ 'ध्यानं परीक्षा तेन धीराः स्थिराः' इति टिप्पणकारः । * 'उद्भूतां मुदं शान्ति ददातीति ( उद्भूतमुद्राः ) इति टिप्पणकारः ।