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जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश सर्वा भक्तयः पादपूज्यस्वामिकृता: प्राकृतास्तु कुन्दकुन्दाचार्यकृताः' अर्थात् संस्कृतकी सब भक्तियाँ पूज्यपाद स्वामीकी बनाई हुई है और प्राकृतकी सब भक्तियाँ कुन्दकुन्दाचार्यकृत हैं। दोनों प्रकारकी भक्तियोंपर प्रभाचन्द्रचार्यकी टीकाएँ है । इस भक्तिपाठके साथमें कहीं कहीं कुछ दूसरी पर उसी विषयकी, गाथाएँ भी मिलती हैं, जिनपर प्रभाचन्द्रको टीका नहीं है और जो प्रायः प्रक्षिप्त जान पड़ती हैं। क्योंकि उनमेंसे कितनी ही दूसरे ग्रंथोंकी अंगभूत है । शोलापुरसे 'दशभक्ति' नामका जो संग्रह प्रकाशित हुआ है उसमें ऐमी ८ गाथाओं का शुरूमें एक संस्कृतपद्य-सहित अलग क्रम दिया है। इस कमकी 'गमरणागमणविमुक्के' और 'तवसिद्ध णयसिद्धे' नामकी गाथाएँ ऐसी है जो दूसरे ग्रंथोंमें नहीं पाई गई।
१६. श्रुतभक्ति---यह भक्तिपाठ एकादश-गाथात्मक है। इसमें जैनश्रुतके आचाराङ्गादि द्वादश अंगोंका भेद-प्रभेद-सहित उल्लेख करके उन्हें नमस्कार किया गया गया है। साथ ही, १४ पूर्वोभेमे प्रत्येककी वस्तुसंख्या और प्रत्येक वस्तुके प्राभृतों ( पाहुडों ) की संख्या भी दी है।
१७. चारित्रभक्ति-इस भक्तिपाठकी पद्यसंख्या १० है और वे अनुष्टुभ् छन्दमें हैं । इसमें श्रीवर्द्धमान-प्रणीत सामायिक, छेदोपस्थापन, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसंयम ( सूक्ष्मसाम्पराय ) और यथाख्यात नामके पाँच चारित्रों, अहिमादि २८ मूलगुणों तथा दशधर्मों, त्रिगुप्तियों, सकलशीलों, परीषहोंके जय और उत्तरगुरणोंका उल्लेख करके उनकी सिद्धि और सिद्धि-फल मुक्तिसम्बकी भावना की है।
१८. योगि (अनगार) भक्ति-यह भक्तिपाठ २३ गाथानोंको अङ्गरूप में लिये हुए है। इसमें उत्तम अनगारों-योगियोंकी अनेक अवस्थाओं, ऋद्धियों, सिद्धियों तथा गुगणोंके उल्लेखपूर्वक उन्हें बड़ी भक्तिभावके साथ नमस्कार किया है, योगियोंके विशेषणरूप गुणोंके कुछ समूह परिसंख्यानात्मक पारिभाषिक शब्दों में दो की संख्यासे लेकर चौदह तक दिये है; जैसे 'दोदोमविप्पमुक्क' तिदंदविग्दं, तिसल्लपरिसुद्ध, तिणियगारवरहिग्रं, तियरणसुद्ध, चउदसगंथपरिसुद्ध, चउदसपूव्वपगब्भ और चउदसमलविवज्जिद' इस भक्तिपाठके द्वारा जनमाधुनोंके आदर्श-जीवन एवं चर्याका अच्छा स्पृहणीय सुन्दर स्वरूप सामने प्राजाता है.